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________________ ४२० ] चितिउ मणि गब्भहो विवरेरउ करिवि पवंचु निवेण मणोज्जहे नवमासहिँ नंदणु उप्पन्नउ जायमेत्तु जो एम वियंभप्र एम भणेवि कंसमंजूसहे नियनामं कियअंगुत्थलियन भीएँ कालिदिहे पवहाविउ जेण कंसमंजूसह लद्धउ वड्ढारिउ जाणिवि कलियारउ गउ सउरीपुरु नं जमदूयउ सिक्खि सव्वु विणयसंपन्नउ एत्त समरभरोड्डियखंधें सयल वि सेव कराविय भूवइ घत्ता - भिउडिभंगभीसणवयणु Jain Education International सिरिचंदविरइयउ रोसुग्गा मियमुट्ठिपहारउ । ताएँ पुत्तु पलोइयउ रासिहि थिउ नावइ अंगारउ ।।११।। सो पक्कु महु सल्लु व सल्लइ जो तं धरइ रणंगणे जूरइ इच्छिदेखें समउ महाजस देवावि घोसण पुरि देवें नियपुराउ सबलेण सकंसें धावारु दूरि परिसेसिवि प्राणिवि मुत्तु पुरीसु मइंदहँ सीहरहेण समेउ महाहवु अंतरि पसरेवि गुरुसी सें सामिण जइ सइँ जुज्झिज्जइ घत्ता - चक्करेण पयंड भड जे जे पवाणुच्छग्गु जिह ते ते १३ १२ [ ४२. ११. ८ ग्रह परिणाम न यहे केरउ । परिपूरिउ दोहलउ सभज्जहे । चारु पुरि लक्खणसं पुन्नउ । सो अग्गइ मइँ अवस निसुंभा । लिवि वारियवारिपवेसहे । सहँ लेहेण रयणकंबलिया । aria कलालि पाविउ । कंसु तेण किउ नामु पसिद्धउ । नीसारिउ माय दुहयारउ । तत्थ सीसु वसुवहो हूयउ । सिवि गुरुणा वरु पडिवन्नउ । साहिय महि तिखंड जरसंधें । एक्कु न पर पइसइ पोयणवइ । केइ वि तासु विसज्जिय । सयल वि तेण परज्जिय ।। १२ ।। थिउ प्रत्थाणि महीवइ बोल्लइ । हुमाणसी मणोरहु पूरइ । नियस्य देमि तासु जीवंजस । आयन्नेवि वत्त वसुएवें । गंपि समुह विजयासें । सत्थवाहवेसें तहिँ पइसिवि । सयल सहाविवि तुरयगयंद हँ । किउ दावियविविहाउहलाहवु । for पेस पणमियसीसें । तो भणु किंकरेहिँ कि किज्जइ । For Private & Personal Use Only १० ५ १० १० www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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