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________________ ४२. ११. ७,] विणिज्जियदुज्जय पीइधवेण वेणु एप्प जंपहु देहुँ उत्तर तेण वि श्रच्छ ताव विसज्जिर देविउ एव भणेवि दयावरु उग्गतवेण समिधु एप्प तावसम्म प्रयाणु पसंसिवि एम महाविहवेण एत्तहि मासोवासु करेप्पिण् घरि घरि भमइ न को वि खडावइ हिडिव नयरु सव्वु गउ राउलु हुर लाहु तह एम तिवारउ नयरहो नीसरंतु पेक्खेप्पिण हा हा राएँ रिसि संताविउ तं निणिवि को कंपंतउ आयउ देविउ चिंतियमेत्तउ ताहिँ भणिउ सो विणउ करेप्पिणु चित्तेण वि न एउ चितिज्जइ बत्ता -- मासि मासि भोयणु करइ सो तहिँ परिवड्डिणुराएँ । जाविम साहु हउँ सयलु वि जणु वाराविउ राएँ || ९ || १० ताउ गयाउ एउ मन्नेप्पणु उ उ उग्गसेनिवकंत हे सा किस पेच्छेवि दूमियमरणा कहको हि दोहलउ कवणु गयवरगइ पुणु वि भणिय किं संकहि कहि पि सामिय यणानंदजणेरउ जामि रुहिरवारि जइ पिज्जइ घत्ता - तेण भणिउ तो महु विहुरे अन्नहँ भवि साहेज्जु करेज्जह | एत्तिउ मइँ प्रब्भत्थियउ अवसरु जाणेष्पिषु प्रवेज्जह ||१०|| ११ Jain Education International पकंपि देविउ तासु तवेण । भणति महामुणि काइँ करेहुँ । पण किंचि वि जायइ जाव । गाउ निवासहो साहु नवेवि । हु मुणि सव्वजणम्मि पसिद्धु । जइ एहु जिणागमजाणु । समच्चि भत्तिभरेण निवेण । [ ४१६ ५ पुरि पट्ठ मुणि जिणु पणवेष्पिणु । निवइनिवारिउ जणमणु तावइ । तत्थ विदिट्ठ न पहु थिउ वाउलु । भुक्खतिसासमसमियसरीरउ । केण वि भासिउ करुणु करेप्पिनु । भिक्ख न देइ लोउ वाराविउ । उ गिरि गोवद्ध संपत्तउ । निणह उग्गसेणु तेणुत्तउ । भुवणपुज्जु जिणलिंगु धरेष्पिणु । किं पुणु किज्जइ काराविज्जइ । १० पोमा विप्राणु नियाणु करेपिणु । गब्भि गुणवंत हे । एक्aहिँ वासरि पुच्छिय पइणा । कहुँ न जाइ देव भासइ सइ । ता उवइट्ठ ताम्र लज्जति । हिउ वियारिवि छुरियन तेरउ । तो संतोसु मज्भु उप्पज्जइ । For Private & Personal Use Only ५ १० ५ www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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