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________________ ४२. ७. ६ ] , कहको [ ४१७ .............. कत्थइ बंभु जगत्तयमनिउ । जयहो जेठ्ठ जगसिट्ठिपवत्तणु लोयपियामहु पावनियत्तणु । तासु वसिठ्ठ पुत्तु हउँ जेट्ठउ पडु पंडिउ पसिधु तवनि?उ । बंभयारि अन्नन्नसमाणउ भणहि काइँ मच्छंधिसमाणउ । ता धुत्ती ती आउच्छिउ केरिसु होइ पयासहि मच्छिउ । सुणु चेडिए वसिठ्ठ तहे सुच्चइ जो मारइ मच्छय सो वुच्चइ । जइ एवं तो ताण पउत्तउ तुहुँ वि निसुंभसि मीण निरुत्तउ । घत्ता-कहहि केम ता तय कहिउ तुहुँ पंचग्गिण कयवेयल्लउ । जडजालें जलि मच्छुलिउ मारंहि विरइयमच्छुच्छल्लउ ॥५।। ५ जइ पत्तियहि न तो लइ छोडहि नियजडजूडभारु पक्खेडहि । एउ सुणेवि तेण सा दूसिवि। झाडिउ जडमंडलु प्रारूसिवि । काउ वि रायसहाण विसुक्खउ काउ वि अल्लियाउ दरसुक्खउ । काउ वि खंडियाउ दरमलियउ निवडियाउ इयरउ मच्छलियउ। पेक्खिवि पहुणा साहुक्कारिय पुज्जिय तुट्ठएण कम्मारिय। ५ वार वार जिणधम्मु पसंसिवि अन्नाणिउ तावसमउ दूसिवि । तं निएवि सनिवइ विभियमणु लग्गउ अरुहधम्मि सयलु वि जणु । ता वसिठ्ठ लज्जइ अवचित्तउ वाणारसिसमीवि तहिँ होतउ । थिउ जाएवि तित्थि गंधावइ गंगासंगमम्मि कुच्छियमइ घत्ता-दिव्वनाणि एक्कहिँ दियहे वीरभदु नामें विक्खायउ। १० पंचहिं सीससयहिं सहिउ मुणि विहरंतु संतु तत्थायउ ॥६।। विभिएण दूसहतवभवणे संघवई पउत्तु अयाणहो । एउ सुणेवि वसिट्टि भासिउ को मइँ कहसु निसुंभिउ पाणिउ जइ तुहुँ नाणिउ मुणिणा वुत्तउ कहिँ तुह गुरु मरेवि उप्पन्नउ वनिउ सो केण वि नवसवणे । विहलु सव्वु एयो दयहीणहो । भो मुणि किं अम्हहँ तउ दूसिउ । केमम्हारउ तउ अन्नाणिउ । तो महु कहहि वसिट्ठ निरुत्तउ । भासइ तावसु तवसंपन्नउ । ५ २७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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