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४२. ७. ६ ] ,
कहको
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कत्थइ बंभु जगत्तयमनिउ । जयहो जेठ्ठ जगसिट्ठिपवत्तणु
लोयपियामहु पावनियत्तणु । तासु वसिठ्ठ पुत्तु हउँ जेट्ठउ
पडु पंडिउ पसिधु तवनि?उ । बंभयारि अन्नन्नसमाणउ
भणहि काइँ मच्छंधिसमाणउ । ता धुत्ती ती आउच्छिउ
केरिसु होइ पयासहि मच्छिउ । सुणु चेडिए वसिठ्ठ तहे सुच्चइ
जो मारइ मच्छय सो वुच्चइ । जइ एवं तो ताण पउत्तउ
तुहुँ वि निसुंभसि मीण निरुत्तउ । घत्ता-कहहि केम ता तय कहिउ तुहुँ पंचग्गिण कयवेयल्लउ ।
जडजालें जलि मच्छुलिउ मारंहि विरइयमच्छुच्छल्लउ ॥५।।
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जइ पत्तियहि न तो लइ छोडहि
नियजडजूडभारु पक्खेडहि । एउ सुणेवि तेण सा दूसिवि।
झाडिउ जडमंडलु प्रारूसिवि । काउ वि रायसहाण विसुक्खउ
काउ वि अल्लियाउ दरसुक्खउ । काउ वि खंडियाउ दरमलियउ
निवडियाउ इयरउ मच्छलियउ। पेक्खिवि पहुणा साहुक्कारिय
पुज्जिय तुट्ठएण कम्मारिय। ५ वार वार जिणधम्मु पसंसिवि
अन्नाणिउ तावसमउ दूसिवि । तं निएवि सनिवइ विभियमणु
लग्गउ अरुहधम्मि सयलु वि जणु । ता वसिठ्ठ लज्जइ अवचित्तउ
वाणारसिसमीवि तहिँ होतउ । थिउ जाएवि तित्थि गंधावइ
गंगासंगमम्मि कुच्छियमइ घत्ता-दिव्वनाणि एक्कहिँ दियहे वीरभदु नामें विक्खायउ। १०
पंचहिं सीससयहिं सहिउ मुणि विहरंतु संतु तत्थायउ ॥६।।
विभिएण दूसहतवभवणे संघवई पउत्तु अयाणहो । एउ सुणेवि वसिट्टि भासिउ को मइँ कहसु निसुंभिउ पाणिउ जइ तुहुँ नाणिउ मुणिणा वुत्तउ कहिँ तुह गुरु मरेवि उप्पन्नउ
वनिउ सो केण वि नवसवणे । विहलु सव्वु एयो दयहीणहो । भो मुणि किं अम्हहँ तउ दूसिउ । केमम्हारउ तउ अन्नाणिउ । तो महु कहहि वसिट्ठ निरुत्तउ । भासइ तावसु तवसंपन्नउ ।
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