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________________ ४१६ ] सिरिचंदविरइयउ [ ४२. २. १२ धत्ता-सा नवंति निएवि तहिँ सव्वहिँ लेवि हसंतह संतिहिँ । पेल्लेवि तहो सामीवि निय पडु पडु पडु पाएसु भणतिहिँ ॥२॥ ३. तो विनमविसा तहो पणवइ जवस पइँ मुणिहे नवेवउ भासइ सा जइ एहु नमसमि सुणिवि वसिट्ठ सुट्ठ आरुट्ठउ हउँ धीवरु जिणयत्तें वुत्तउ पहुणा भणिउ वणिउ तुहुँ मुणिवरु एउ सुणेवि वणिणा वुत्तउ मुणि महराय भणमि जइ मच्छिउ भइ वसिठ्ठे न एण पउत्तउ जिणयत्तेण भणिउ सवसित्तणु घत्ता- - संजायउ निद्दोसु वणि ता धरणीसें सा कोक्काविय । पुच्छिय वइयरु वज्जरइ निच्छयमण जिणसासणभाविय || ३|| हउँ पुईस पयउ जिणयत्तहो हँ तव हु तहिँ नीरहो हो सयलु विपुरजुवईयणु हउँ न पक्क पडमि तुरियावमि तुम्हइँ पुव्वजम्मकयपुन्नउ पणवह रिसि वीसत्थउ भावें एहउ महिलायणहो निरंतरु एक्aहिँदि पुणु वि नेच्छतिय भणिय प्रज्ज पइँ जाव न जइवरु केमवि मुयहिँ न चप्पिय कंठग्र जा णवयारु करावह एयहो Jain Education International हलि पुणु जुवईणु पलवइ । यह कह केम जाएवउ । तो मच्छंधउ किं न पसंसमि । जाइवि रायहो वइयरु सिट्ठउ । ता कोक्काविउ सो वि पहुत्तउ । भहिए कि कारणु धीवरु | एहु जि मज्भु पमाणु निरुत्तउ । ता हईसें सच्च पुच्छिउ । एहो लंजिया ग्रहि खित्तउ । दिट्ठउ देवमुणिहे सच्चत्तणु । ४ पेसणयर थिर जिणमयचित्तहो । जामि निच्च जमुणानइतीरहो । पायहँ पडइ भक्तिभावियमणु । नउ सामिणिभण खणु लावमि । अप्पवसाउ कयत्थउ धन्नउ । हउँ परवस उप्पन्नी पावें । देमि भणतो देव पडुत्तरु | सव्वहिँ मिलेवि गलत्थेविणु निय । वंदिउ ताम जाहि कहिँ किर घरु । ता मइँ ताउ पउत्तउ रुटु । तो धीवरहो किं न प्रविवेयहो । घत्ता-- -एउ सुणेवि एहु कुविउ पच्छइ अक्कोसंतु पधाइउ । इँ समे भयभीयमणु थीयणु भवणि पलाप्रवि [इ] ॥४॥ For Private & Personal Use Only ५ १० ५ १० www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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