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________________ संधि ४२ धुवयं-सासयपुरहो कवाडु दिढ कारणु मुयह नियाणु अणि?हो । प्रायन्नह तप्फलु कहमि जिह वुत्तउ वित्तंतु वसिट्टो ।। सूरसेणजणवश हयविहुरहे उग्गसेणु पुहईसरु महुरहे । अत्थि तासु महएवि मणोहर रेवइ नामें पीणपनोहर । सेट्टि विसिठ्ठ सुठ्ठ जिणयत्तउ जिणमइवल्लहु जिणपयभत्तउ । ५ तासु पियंगुसिरी कम्मारिय बहुगुण पंचाणुव्वयधारिय । तेत्थु जि कालिंदीतडि तावसु वसइ वसिठ्ठ नाम निट्ठावसु । मोडिउ सो मिच्छामयवाएं उद्धबाह थिउ एक्के पाएं । निच्चमेव दूसहसंसग्गिउ विसहइ गिंभयालि पंचग्गिउ । असहंतउ तत्ता हल्लइ बार वार जलि अप्पउँ घल्लइ। १० जडजालेण तासु पडिखलियउ नीसरियउ मरंति मच्छलियउ । जलयर सुहम जीव को लेक्खइ अवियाणियसंजमु उप्पेक्खइ । घत्ता-एमच्छंतही तत्थ तो भत्तिहरिसवस एंति थुणंति । देवि पयाहिण पयजुयलु पउर लोय अणुदियहु नमति ॥१॥ एक्कहिं वासरि पाणियहारिहिँ सव्वु कोइ आयो अप्पवसिहि तुहुँ न परेक्क एहु रिसि वंदहि भासइ सा तुम्हइँ अप्पवसउ हउँ पुणु पाविणि पावें पेरिय जइ पाणिउ लहु लेवि न वच्चमि ................. वियक्खणु सो पाएसु पडइ मुणिपवरहो निच्चु जि सा इउ उत्तरु देप्पिणु पुणरवि एक्कहिं वासरि महिलहिँ नवर पियंगुसिरी अनवंतिय भणिय पियंगुसिरी मणहारिहिँ । भत्तिण पाय नमसइ तवसिहि । मूढिए कि अप्पाणउ छंदहि । पुवक्कियभुक्कियकम्मवसउ । हुय परवस पयहरि कम्मारिय । ५ तो सामिणियम...............। जाणइ धम्माहम्मसलक्खणु । हउँ अविवेय सरिस गोरहरहो। जाइ घरही घडु जलहो भरेप्पिणु । एवि तासु पय पणविय सयलहिँ। १० थिय दूरंतरि चोज्जु नियंतिय । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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