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४१० ] सिरिचंदविरइयउ
[ ४१. २३. ५भल्लउ भाणिउ भणइ पयावइ
मझु वि चित्तहिँ एहु जि भावइ । ५ पुच्छिउ ण वियाणइ मेदज्जउ
ठिउ हेट्ठामुहु होवि सलज्जउ । इयरु भणइ णरणाह सुणिज्जउ
तुह कुलि पढमउ राउ अरिजउ ।। वीरंजउ जयंतु पुणु उज्जउ
चक्काउहु चक्केसरु दुज्जउ । दुद्धरु दुम्मरिसणु सत्तुंजउ
देवपालु जगपालु पुरंजउ । पुणु धणवाहणु ताउ तुहारउ
पुणु हरिवाहणु तुहुँ सुहयारउ । १० घत्ता-ए तुह कुलरुह नरवसह जिणदिक्ख लएप्पिणु ।
के वि सग्गही के वि सिवपयहो गय रज्जु मुएप्पिणु ॥२३॥
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२४
मझ वि कुलि माणवु पढमु
पुणु महिंदु अक्खोहसमु। धणवइ धणउ धणेसरउ
सुरवइदत्तु विमुक्करउ । सायरगुरुजिणवरुणधणा
दत्तंता दीणुद्धरणा। जणणु सुबंधु महुं तणउ
पुणु हउँ पत्थिव तहो तणउ । एत्थु जि एत्तिय दोसचुया
तुह संताण सेठ्ठि हुया। पाराहेवि जिणिंदपया
सिद्धा के वि हु सग्गु गया। एयइँ अवराइँ वि सुवि
वयणइँ सो सच्चउ मुणेवि । तूसिवि पहुणा पुज्जियउ
ता दोंछिउ इयरु वि लज्जियउ । बंधह एहु पवंचपरु
भणिउ सुयणसंतावकरु । नेवि मसाणइँ निट्ठवह
पेयाहिवपुरु पट्ठवह । १० लद्धाएसहिँ किंकरहिं
बंधिवि तुरिउ भयंकरहिं । पुरलोएण वि निदियउ
मारहुँ सवसयणहो नियउ । घत्ता-पुणरवि सो सुरु होवि मुणि वेउव्वियकायउ । जामज्जवि नवि सूलियह घिप्पइ तामायउ ॥२४॥
२५ अवराइँ वि बारह हायणाइँ
मेदज्जय सोक्खुप्पायणा । भासिउ सुहि तिलयासुंदरिए
लइ अच्छहि समहँ सुहंकरिए। ता भणिउ तेण परिरक्खकरे
परमेसर मारिज्जतु धरे । भो एहिँ न किं चि वि कज्जु महं
मेल्लावहि संपइ सरणु तुहुँ । नउ एवहिँ कालखेउ करमि
दे देहि दिक्ख दुक्किय हरमि। ५ ता संजएण साहारियउ
थिरु थाहि तलारु निवारियउ।
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