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४१. २७. ६ ] , कहकोसु
[ ४११ पुच्छिवि जामावमि जिर्ण सरणु
रक्खेज्जसु तामायहो मरणु । इय भणिवि गंपि सुंदरमइणा
कयपणइ भणिउ भूवइ जइणा । सो सेट्ठि तुज्झ तणयाहे पिउ
मा माराविज्जउ प्राणपिउ । मइँ देवें एहु पवंचु किउ
वणिवेसु धरेप्पिणु भवणि थिउ । १० नरवरजणमणहु भंति जणिया
वक्खाणिय संतइ तुह तणिया। घत्ता-एहउ विभियमाणसेण निसुणेवि विसेसें ।
__ कहि केहउ संबंधु हुउ पुच्छिउ पुहईसें ॥२५॥
२६
भासइ सुरमुणि सो धरणीवइ
[आणाविज्जउ मेदज्जु वि लइ] कहमि जेम निहिलु वि नियवइयरु
ता राएण विसज्जिउ किंकरु । गंपिणु तेण मसाणहो आणिउ
मेल्लाविउ पहुणा सम्माणिउ । एत्थंतरि पयडिवि अप्पाणउ
कहिउ असेसु सुरेण कहाणउ । फडहत्थाइउ मेदज्जंतउ
नियभवसंबंधेण निउत्तउ । निसुणिवि सव्वु लोउ उवसंतउ
हुउ सहुँ राएँ विभियचित्तउ । सेट्ठि सुठ्ठ विसएसु विरत्तउ
देवें कंचणकलसहिँ सित्तउ । पुज्जिउ परमविहूइ पुत्तो
अप्पिवि नियअहियारु सुदत्तहो । पुच्छेप्पिणु पहु परियणसयणइँ
खमिवि खमाविवि बोल्लिवि वयण । संजायउ जइ समग्र जिणिंदहो
पणवेप्पिणु सिरिधम्मु अणिदहो । १० गुरुउवएसें चत्तपमायउ
भावइ पंचमहव्वयकायउ । पालइ संजउ तेरह किरियउ
कित्तिसेणतिलियासुंदरियउ । बत्तीस वि मेदज्जयदइयउ
सुहमइयउ जायउ संजइयउ । घत्ता-पुहईसेण वि तं सुणेवि ढोइवि सिरि पुत्तहो ।।
सहु सामंतहिँ लइउ तउ सामीवि सुगुत्तः ।।२६।। १५
गउ सग्गहो सुरु संजायतुट्ठि सुहमइ परियाणियसयलसत्थु एकल्लविहारिउ चरमदेहु विहरंतु संतु सममित्तसत्तु तहिँ राणउ वइरिविहंगसेणु णाणाविहनेउन्नयनिकेउ
एत्तहि वि सवणु मेदज्जसेट्टि । दूसहतवसंजमभरसमत्थु । ससरीरि वि हुउ निम्मुक्कनेहु । कोसंबीनयरु कयाइ पत्तु । नामेण अस्थि गंधव्वसेणु। सूनारु तासु अंगारवेउ ।
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