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४१. २३. ४ ]
मनिवि गउ नियवासहो संजउ खणुविन तिलयासुंदरि मेल्लइ पुण उण तं जि पउत्तउ लइ त पुणु वि भणतउ एत्तउ पण कोतुहुँ किं एत्थावहि छंडिवि सिरिविलासु श्रावग्गउ भिक्ख भममि तो तुह पडिहासइ
दुल्लंघ नवर जइ कम्मसत्ति इय चितिवि गयउ विसन्नचित्तु पावेष्पिणु अवसर मइविसालु मेदज्जरूउ सुरवरु करेवि तहिँ वसरि सुहिसेवय सहाउ वारिउ पडिहारें पइसरंतु दज्जु सेट्ठि तुहुँ धुत्तु कोइ निसुणेवि उ उद्देइएण अन्नाउ नराहिउ नायदिट्ठि मायाविउ संपय सीकरेवि
ताराएँ जो जो कोइ तासु सो सो पेक्खइ तेण जि समाणु
घत्ता-ता चितइ मणि देवमुणि पेच्छह किं बोल्लइ । बुझ हु नियाणवसु तें भोउ न मेल्लइ ॥२१॥
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पुणु दोहँ विसमुहँ निरिक्खइ म परियाणिवि जणियाणंदें
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कहको सु
तुम्ह अहह संत बुज्झइ
सो सच्चमउ सेट्ठि सुहयारउ
माइ विसयसोक्खु मेदज्जउ । ग्रह को कम्मु पुराउ पेल्लइ ।
सुरु सुहिसंबोहण चित्तउ | सुणिवि सेट्ठि कोवेण पलित्तउ । वार वार मइँ त लेवावहि । घरि घरि पइँ जिह होइवि नग्गउ । १०
को जातु विउँ नासइ ।
घत्ता - विभिउ पुहईवइ सुणेवि पेसिउ हक्कारउ । आयउ हिणवसेट्ठि तहिं लहु सालंकारउ ॥२२॥
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गरुय वि मोहिज्जहिँ नत्थि भंति । हिँदि धारिवि निमित्तु । दारम्मि धरेप्पणु दारवालु । थिउ गेहभंतरि पइसरेवि । मेदज्जु विप्रायउ राउलाउ । अच्छइ अब्भंतरि रइ करंतु । जा जाहि जाम विरुयउ न होइ । तूण नरिंदो कहिउ तेण । परिताहि कोइ वि होवि सेट्ठि । थिउ भवणि महारण पइसरेवि । पट्ठविउ पलोयहुँ पुरिसु पासु । आवेवि कहइ पाविय प्रमाणु ।
कवणु सेट्ठि पहु तो वि न लक्खइ । भणिउ महीवइ देववणिदें । आइ मज्भि अवसाणि न मुज्झइ जो न वियाणइ सो मायारउ ।
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