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________________ ४०.११.] ता णत्थि तत्थ चितइ मणेण तइयउ न वियाणइ अवरु भेउ थोवंतरि रिसि सज्झाउ लेंतु उवविट्ठ पुरउवंदणु करेवि जणसंकुलु नयरु विरन्नु नाइ तेणेह ममोवरि करि पसाउ सुहगो हयभवभयरिणाइँ वो विनिवि श्रईवगाहु थिउ जिणहरि जियजलजायके उ पडिगाहिवि भुंजाविवि सवणु प्रथम सूरि वंदेवि देउ संजमधरो वि दूसियदुकम्मु वणिणा उत्तु परमत्थभावि मुण भइ वणीसर बहुसुयड्दु घत्ता-- कि दूरं आओ सि सावय ता सो भासइ । इँ विणु महु मुणिनाह चित्तु न कत्थइ विलसइ ||९|| Jain Education International कहकासु तो लद्धाणुग्गहु कहइ सेट्ठि पुरि पोमनामि पावियविसेसि कोसलवईहि मित्तत्तणेण गच्छंतु संतु गहणंतरालि मुच्छेवि पडिउ निच्चेट्टु जाउ करुणा तेण तं तह निएवि तो उवरि महीरुहु रुहेवि उट्ठ प्रासासि सो सरेण संजायउ सुहि पाणिउ पिएवि १० हा वंचित हउँ सवणेण तेण । भासविणुधाविउ सवेउ । अवलोइउ तरुतलि वीसमंतु । मुणा विभणिउ आसीस देवि । १० घत्ता - तेण पहिल्लउँ ताम तुहुँ जे सुयण जिह जाहि । संक मुएप्पिणु भाणहि ॥ १०॥ अच्छउँ सुहगोट्टी ११ [ ३९३ ५ पइँ विणु न मज्भ किंचि वि सुहाइ । हिँ तुम्हइँ तहँ जि उव्वु ठाउ । अच्छह पुणो विकइवयदिणाइँ । वाहुडिउ पुणागउ तहिँ जि साहु । जिणयत्तु सेट्ठि गउ नियनिकेउ । अवरहि समागउ जइणभवणु । विट्ठ पुरउ पुत्तं समेउ । निव्वत्तिविथ नियनियमकम् । भयवंत कहाणी कहसु का वि । तुहुँ दिट्ठपरंपरु गुणवियड्दु । एत्थत्थि करावियवइरिविट्ठि | वसुपालु नरिंदु वराडदेसि । एक्कहिँ दिणि पेसिउ दूउ तेण । तहान खविउ सो उन्हयालि । ता तहिँ भमंतु कइ एक्कु प्राउ । जाइवि जलि वोलिवि देहु एवि । झाडिउ सरीरु चेयण लहेवि । सन्निविनिउ जहिँ जलु वानरेण । मारेवि पवंगमु खल्ल लेवि । For Private & Personal Use Only १० ५ www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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