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________________ ३६४ ] सिरिचंदविरइयउ [ ४०. ११. १०वारिहे भरेवि गउ निव्विवेउ किं जुत्तु तासु भयवंत एउ। १० जीवाविउ जेण मरंतु संतु धि द्धी किह किज्जइ तासु अंतु । घत्ता-आयनेप्पिणु एउ अणयारेण पउत्तउ । सावय तेण खलेण किउ दूएण अजुत्तउ ॥११॥ ता मुणिणा मणु जाणेवि निरुत्तु कोसंबीनयरि मणोहिरामु तेणेक्कहिँ दियहिँ अपुत्तएण सिसु नउलहो तणउ निएवि लेवि ताए वि कविलनामालियान हुउ गरुयउ गरुडु व गिलियनाउ एक्कहिँ दिणि तो रक्खणु धरेवि नायारि वि रक्खइ जाम बालु तें डसिउ डिंभु पंचत्तु पत्तु मारेविणु दारेविणु हयासु पुण कहमि हउँ वि कह वणि पउत्तु । होतउ बंभणु सिवसम्मु नामु । उज्जाणवणम्मि भमंतएण । गेहिणिहे समप्पिउ गेहु नेवि । पालिउ पुत्तो इव बालिया। ५ कालेण जणेरिहे पुत्तु जाउ । पाणियहो कविल गय घडउ लेवि । नीसरिउ ताम अहि नाइँ कालु । नउलेण वि सो नासंतु पत्तु । घल्लिउ तले दारयमंचयासु । १० घत्ता–ता पाणियहां भरेवि जा माया घर आवइ । ___ पेयाहिवपुरु पत्तु नंदणु ताम विहावइ ।।१२।। निच्छउ वि विवाइउ एण पुत्तु तें दीसइ मुहु रुहिरावलित्तु । इय भासेवि रोसवसंगयात्र अपरिक्खिउ मारिउ नउलु ताण । पुणु जाणिउ मंचयतले पयंडु विसहरु निएवि किउ खंडु खंडु। हा एण हयासें असिउ लीवु एहु वि अणेण किउ विगयजीवु। निद्दोसु वियाणिवि विसहरारि गय परमविसायहो विप्पनारि । ५ अवरु वि अपरिक्खियसीलु मुक्खु परिपावइ पच्छातावदुक्खु । अहिणा कयम्मि दोसम्मि नउलु मारिज्जइ किं वि णएण विउलु । जइ खाइ छावु वणिवर वराहु ता किं हुउ हम्मइ निरवराहु । घत्ता-कियउ अजुत्तउ ताण वणिणा भणिउ मुणीसरु । अवरु वि जणियविवेउ निसुणह कहमि कहतरु ॥१३॥ १० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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