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________________ ३६२ ] सिरिचंदविरहयउ [ ४०. ७. ३हउँ नयरि भमंतें तेण दिट्ठ ओलक्खिय बोलाविय विसिट । आयनिवि वइयरु मणि विराउ मेल्लाविवि इह मइँ लेवि आउ । रुहिरवखन वियणइ वियलु अंगु महु तणउ निएप्पिणु रूवभंगु। ५ पुच्छिउ वरइत्तें वेज्जराउ तेण वि उवएसिउ लक्खपाउ । मक्खणु किउ तेण मणोज्जकाउ एक्कहिँ दिणि आगउ वीयराउ । मुणिधम्मनामु तो पासि गहिउ मइँ सावयवउ सम्मत्तसहिउ । अवरु वि रूसेव किय निवित्ति तइयहुँ पहूइ महु परम खंति । घत्ता--प्रायन्नेप्पिणु एउ चंगउ किउ मन्नेप्पिणु । __ गउ वणि तेल्लु लएवि ताहे पसंस करेप्पिणु ॥७॥ मुणि बज्झन्भंतरचत्तसंगु हुउ तेणब्भंगिउ निम्मलंगु । तेत्थु जि थिउ वयणें वणिवरासु ता रुहिवि खंधि घणगयवरासु । सूरप्पयावपसमणसमत्थु इंदाउहवरकोयंडहत्थु । दूसहसरधारासर मुयंतु गलगज्जितूरबहिरियदियंतु । विज्जुलियविहूसणसोहमाणु वप्पीहबंदिवन्निज्जमाणु । पयणंतु पयहिमुच्छायभाउ संपत्तउ वासारत्तराउ । संतावियभवणु भएण त? तं पेक्खिवि चरडु निडाहु नठ्ठ । आणंदिउ जणु कत्थइ न माइ संताविरु किं कासु वि सुहाइ । सव्वो वि समीहइ जणियहरिसु संतावहारि पहु अमियवरिसु । सव्वत्थ वि महि अंकुरिय भाइ रोमंचिय पियसंगेण नाइ। गमु भग्गु निरंतर पडइ वारि पवसियपियाहँ हुय विरहमारि । घत्ता-तेत्थु जि जिणदत्तण नियजिणभवर्ण भडारउ । ता लेवाविउ जोउ मयणबाणविणिवारउ ।।८।। तेणेक्कहिँ वासरि सावएण आणेवि घडु रयणसुवन्नभरिउ तेण वि बहि पच्छन्ने निएवि मुणिणा मुणेवि जिणयत्तपुत्तु जोयम्मि खमाविण मुणिवरिंदु अम्मणु अच्चेविणु आउ सो वि ससुयहाँ कुबेरदत्तहो भएण । निक्खणिवि साहुसामीवि धरिउ । अन्नत्थ कहि मि निक्खणिउ नेवि । धणु नेतु वि किं चि वि सो न वुत्तु । चल्लिउ पुच्छप्पिणु वणिवरिंदु। ५ तं जोयण जा एयंति होवि । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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