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________________ ३६. ११. ११ ]. कहकोसु [ ३८५ घत्ता-तेण वि जाएप्पिणु गुणि जाणेप्पिणु विणउ करेप्पिणु प्राणियउ। १० जणमणनयणपिय पुत्ति समप्पिय देवि दव्वु सम्माणियउ ॥९॥ १० जणु निरवसेसु विभयहो निउ रविरूवें विज्जा तत्थ थिउ । जामच्छइ भोयासत्तमणु गुरुहार ताम हुय सा सुयणु । नामें नग्गइउ सलक्खणउ संजायउ पुत्तु वियक्खणउ । सूराहु भणेविणु सूरसुअो नग्गइउ जणम्मि पसिधु हुउ । मेल्लेवि वसंतसेण सवणु जायउ नमि पुणरवि सुद्धमणु। ५ मुंडीरनयरि पढमुग्गमणु कालप्पियम्मि मज्झन्नखणु ।। पुणु मूलत्थाणण अत्थवणु अज्ज वि आइच्चो भणइ जणु । पुच्छेवि नियमायउ मुवि सिरी तिन्नि वि जण गंपिणु गहणगिरी । दुम्मुहकरकंडूनग्गइया नमि मुणि पणवेप्पिणु पव्वइया । कालेण चयारि वि पयरया विहरंत पयावइगामु गया। १० पासुउ कुंभारावाउ जहिं रत्तिहे थिय हत्थत्थमिय तहिं । झाणत्थियाण ताणुवरि तिणा लाइउ अवाउ खलदुम्मइणा। उवसग्गु सहेवि तिलोयथुया गय मोक्खहो अक्खयसोक्ख हुया । घत्ता-वज्जेण समाहउ सत्तम महि गउ कुंभयारु मुणिवहकरण । अज्ज वि तहिँ दीसइ जइ निसि निवसइ तो कुलालु पावइ मरणु ।।१०।। १५ ५ आहासमि लोयपसिद्ध जेम बंभेण वसंतें बंभलोग जणु हरिहर इंदसहाइ सव्वु महु पासे न कोइ वि एत्थुपेइ इय भर्णवि विवज्जेवि बंभलोउ हरिहरसूराइसुराणुभत्तु गउ बंभसाल बंभण पढंत नियपडिमहि किंचि वि नत्थि भोउ दठ्ठण विसेसें जाउ कोउ वयणेण विप्प अलियब्भुएण ऊरूहिँ वइस पाएण सुद्द निसुणह कह बंभो तणिय तेम । चिंतिउ कयाइ कयदुहविप्रोण । आवइ पडु जावइ विगयगव्वु । एक्कल्लहो मणु उद्देउ देइ । इत्थायउ पेच्छहुँ मच्चलोउ । जणु जोवि कमलासणु पलित्तु । आलोइय हरि हरि हरि भणंत । नउ धुउलजत्तसंगीयजोउ । पेच्छह मइँ जायउ सयलु लोउ । उप्पाइय खत्तिय भुयजुएण। तलवायहिँ अवर वि जे रउद्द । १० २५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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