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________________ ३६. ७. ६ ] कहकोसु [ ३८३ एत्तहि विहरंतउ सव्वहिउ नमि पत्तउ पट्टणु कालपिउ । तहिँ गंगदत्त नामें वसइ कुंभारु कुलालपयाहिवइ । तो गेहिणीहे विमलाहे हुया सुय विस्सदेवि रूवेण जुया। ५ एक्कहिँ दिणि ताइँ कज्जवसई भवणंगणि सुक्खहुँ सहरिसइं। भंडाइँ थवेप्पिणु आमयइं वेन्नि वि जणाइँ कत्थ वि गयई । तो तहिँ अयालजलवुट्टि हुया आउल किय ताण कुलालसुया । पेक्खिवि सुरूव पीणत्थणिया भिक्खागएण मुणिणा भणिया । घत्ता–किं दिसउ नियच्छहि जइ मइँ इच्छहि तो भंडाइँ सुयण पणमि।। सा भासइ मेरउ देइ जणेरउ जइ तो तुह रइसुहु जणमि ॥५॥ ५ तो अहिमंतिवि दंडउ तेण समप्पिउ ताश मयच्छि इमेण । छिवेहि इमाइँ असेसइँ झत्ति चलंति गिहंतरु जेण विसंति । सुणेप्पिणु ताश को उवएसु पइठ्ठ सयं घरि भंडु असेसु । तो सहसत्ति मुएप्पिणु कज्जु पराइउ तेत्थु कुलालु सभज्जु । सुणेवि विहाणु पहुट्ठमणेण । विइल्ल विवाहहुँ णंदणि तेण । नमी वि सुहेण समेउ पियार थियो तहिँ पेम्मपरव्वसु ताए । दुवालसमासहिँ सा गुरुहार हुयालस जेंभण मंथरचार । निरुज्जम लज्ज मणा वि न तुझु विढत्तउ तायो भुंजहि मज्झु । सुणेप्पिणु भामिणिभासिउ तेण । कवालिय एक्क किया निउणेण । लहेवउ जं पइँ किं पि इहज्जु असेसु वि देवउ तं महु अज्जु । घत्ता-एरिसु भासेविणु अहिमंतेविणु मयणविवक्खनिसुंभणहो। मग्गंतहो अप्पिय जणनयणप्पिय सा गोविंदहो बंभणहो ॥६॥ १० गोविंदु वि तं मन्नेवि वयणु पइसंतु संतु पालोइयउ देविण अदिठ्ठ सिरिवउ विहिउ अब्भंतरि पइसिवि मणहरिया उप्परि पूरेप्पिणु पायसेण आवेवि कुलालहो दिन्न करे भिक्खहे पइठ्ठ पुरु तुट्ठमणु । निववहुपेसियपुरिसें नियउ। तहो देविण भोयणु रससहिउ । कावालिय बहुरयणहिं भरिया । पणवेवि समप्पिय सहरिसेण । तेण वि पियाई पइसरिवि घरे । ५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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