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________________ ३८२ ] सिरिचंदविरइयउ धत्ता-ता बहुविन्नाणहिँ लद्धसमाणहिँ नच्चतेण प्रणयरसु । रंजियजिणचित्तें मुणियनिमित्तें पढ़िउ तेण पत्थाववसु ||२|| यस्स पढमपायहो तणउ बुद्ध गम विवज्जिउ ३ तद्यथा - दीर्घं चिन्तयितव्यमल्पसुखमात्मनो न कर्तव्यम् । उत्पथेन न गन्तव्यं न श्रोतव्यं क्षुद्रजनवाच्यम् ॥ तत्थेव बंभचरियाहइया अवरेक्कें सहुँ रहसहो भरिया कोण जणु मिलिउ जहिं न करेवर अप्पो अप्पसुहु संजयविवेय छड्डियउ जं लेप्णुि विसयासत चलिया पुज्जिउ नडु दिन्नउ पवरधणु भासि हलि होसइ तुज्झ सुउ तं मुरजब्भंतरि छुहिवि तहिं छड्डेपणु एम भणेवि गुणी त जावमेत्तु तणउ घल्लिउ मसाणि ता तहो पुरहो तेत्थु जे पत्थावि परोक्खु हुउ हिवासि मंतिहिँ रायगउ घत्ता - भम्म णिवपुत्तहिँ दुम्मइजुत्तहिँ उवरिम वेन्नि पाय सुणिवि । उम्मग्गविवज्जणु खलवयणुज्झणु किउ दोहि मि हियत्थु मुणिवि ॥३॥ पुरपरियण जय कारियउ परिवडि दुम्महु नामु किउ Jain Education International [ ३६. २. १२ ४ अवधारिवि श्रत्थु सुहावणउ । प्रत्थेण तानडु पुज्जियउ । नवजोव्वण एक्का पव्वइया । मढदव्वु एप्पिणु नीसरिया । नडु निवि निहालहुँ लग्ग तहि । आयन्निवि वंकिउ ता महु । जाएवउ सीलु न खंडियउ । सानो समप्पिय पोट्टलिया । तेण वि तें रंजिउ पियहे मणु । बहुलक्खण सुंदरु सुयणथुउ । घलेज्जसु एत्थ मसाणु जहि । घत्ता -- तहिँ नयणाणंदें तेण करिंदें जणहो नियंतहो सोहणए । उच्चाप्रवि बालउ सो सोमालउ खंधि चडाविउ अप्पणए ॥४॥ ५ गुरुसमीवि उ परममुणी । पक्खेवि मुगि सुहावणउ । सामि विससेणु मनोहर हो । भाइ भक्तिज्जउ नत्थि सुउ । सव्वत्थ भमेवि मसाणि गउ । हिसित्तु रज्जि व सारियउ । अच्छइ सुहेण तहिँ कियसुकिउ । For Private & Personal Use Only ५ १० ५ १० www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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