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________________ ३७८ ] सिरिचंदविरइयउ [ ३८. ११. १ दोहा-तासु सरीरहो सीयलो अप्पाइयफंसेण । विसयासान नियाणु तय किउ दुक्कम्मवसेण ।। अन्नहँ भवि पयडियपरमनेहु भत्तारु महारउ होउ एहु । इय करिवि नियाणु विमुक्ककाय सोहम्मसुरिंदहो देवि जाय । केवट्ट वि मिच्छातउ तवेवि हुउ जेट्ठहे नंदणु भवि भमेवि । ५ एत्तहि सावित्थिहे वासवेण महएविहे मित्तमइह निवेण । विज्जुमई नामें जणिय कन्न तडिदाढहाँ विज्जाहरहो दिन्न । सा देवि एवि तहे गब्भवासि हुय कहव विणिग्गय नवममासि । निविनय पीडावसण ताण घल्लाविय सावत्थिहे गुहाए । ता तहिँ चत्तारि दियंगयाउ पुन्नेहिँ ताहिँ कीलहुँ गयाउ। १० घत्ता-ताहिं उमा उमि त्ति निवि रोवंती बाली। भणेवि उमा करुणाप निय मंदिरु सोमाली ॥११॥ १२ दोहा--गंपिणु राउलु राणियह दाविय मित्तमईहे । ताट वि पालहुँ पंडियह अप्पिय नियधाईहे ।। मज्झम्मि अद्धचंदह पहाणु खगनाहु इंदुसेणाहिहाणु । तहि गयणंगणे चोइयविमाणु एक्कहिँ दिणे आयउ विहरमाणु । सम्माणेवि तहो कूलउत्तियाहे नियबहिणिहे भणेवि अपुत्तियाहे । ५ सा मित्तमईए सनामियाहे अप्पिय गिरिकन्नियनामियाहे । ताए वि पयत्तें पालिऊण किय जोग जुवाण निहालिऊण । सुंदरि सुरकूडपुराहिवासु तडिरयो दिन्न विज्जाहरासु । मयमत्त सुठ्ठ सुरयाणुराय मुश तम्मि उमा सच्छंद जाय । एक्कहिँ दिणि मग्गी देवदारु तेण वि मुणेवि तहे तणउ चारु । १० घत्ता-दिन्नी रुद्दो रइगुणण ताइ वि पडु जाविउ । विज्जाविहवहीं अच्चुतह अद्धासणु पाविउ ।।१२।। दोहा-रुदु वि रुदंबुयसरिसु तहे मुहकमलु नियंतु । अच्छइ अहनिसु सरिसरहिँ गिरिकंदरहिँ रमंतु ।। १ इंदसेणा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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