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________________ ३८. १५. २ ] कहकोसु [ ३७६ जडमउडविहसिउ विसमगामि भूइ सुरु कुंडिउ तिजगसामि । हउँ कत्ता हत्ता सिवु सयंभु चितिउ फलदाइउ दुहनिसुंभु । ईसरु हरु संकरु सिधु बुद्ध तिउरारि तिलोयणु पयइसुधु। ५ सव्वण्हु उमावइ भवपमत्थि इय भासेवि दूसैवि अवरु नत्थि मायाविउ रंजेवि जणमणाइँ वेयड्ढे वसेप्पिणु वहुदिणाई। विरएप्पिणु सइँ भरहम्मि एत्थु आवेप्पिणु पयडिउ सइवसत्थु । दिक्खिय बहु सइवायरिय हूय दावियगुण मिलिया गण पहूय । परियरिउ तेहिँ अखलियपयाउ अणवरउ उमापेम्माणुराउ । १० बारहवरिसावहि विसयसोक्खु भुजंतु भमिउ महि हयविवक्खु । विज्जाहर सयल वि दसदिसासु प्रासंकिय नियवि पयाउ तासु । एक्कहिँ दिणि ससुरहो अङ्घ रज्जु मग्गिउ रुद्देण जि देमि अज्जु । ता जंबुएण चितिउ मणम्मि मारमि उवाश एयं खणम्मि । घत्ता-एहु महाविज्जावलिउ अम्हइँ मारेसइ । निच्छउ उत्तरदाहिणउ सेढीउ लएसइ ॥१३॥ १४ दोहा--केण उवाएं एहु खलु हम्मइ हणइ न जाम । इय चिताउलु नियवि जणु बहिणिय पुच्छिय ताम । सुइ कइयहुँ सुह जामाइयासु विज्जउ अवसाउ महाइयासु । ता कहिउ ताण मइँ सहुँ सुहालि विज्जाउ फुरंति न सुरयकालि । लहिऊणवएसु दुरंडनयरि । गंधारदेसि धणधन्नपयरि । ५ सिरु सुरयारूढो तेहिँ तासु कप्परिउ सुकंतहो किउ विणासु । हए तम्मि सव्वु विज्जाहि देसु उव्वासिउ उप्पाइउ किलेसु । उवसग्गु निएप्पिणु जणहो घोरु घरि घरि मूसंतु कियंतु चोरु । रिसि नंदिसेणु ईहियसिवेण पुच्छिउ विससेणनराहिवेण । भयवं उवसग्गहरे किं निमित्तु ता भासइ परियाणियनिमित्तु । १० घत्ता--रुद्दु नाम विज्जाहिवइ अखमावियविज्जउ । मारिउ तेणुवसग्गु इह वट्टइ अमणोज्जउ ।।१४।। दोहा--थर्ववि उमाहि उवत्थे जइ छिदेप्पिणु तहो लिंगु ।' पुज्जह विज्जउ उवसमहिँ तो नासइ उवसग्गु ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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