________________
३७६ ]
सिरिचंदविरइयत
[ ३८. ६. ११धत्ता-अत्थि खगाहिवु कणय रहु महएवि मणोरम ।
देवदारु विज्जारसणु सुय जाय मणोरम ।।६।।
दोहा--राणउ देवदारु करेवि विज्जजिब्भु जुवराउ ।
पणवेप्पिणु गुणधरमणिहे राउ दियंबरु जाउ । पन्नत्तिपहावें दुन्निवारु
किउ विज्जाजिब्भे देवदारु । नीसारिवि घल्लिउ लइउ रज्जु
किं किज्जइ दइवायत्तु कज्जु । कइलासि सो वि ससहाउ एवि.
थिउ निब्भउ विज्जापुरु रएवि। ५ चत्तारि सुराहिवगयगईउ
महएविउ तासु महासईउ । जोयणगंधा कणयातरंग
वेयातरंग भामिणि सुहंग । जोयणगंधर्ह गंधेल्ल धीय
हुय अवर गंधमालिणि विणीय । कणयाहे कणयचित्ता गुणाल
उप्पन्नी कन्ना कणयमाल । तणया तरंगवेयहे तरंग
सेणा तरंगमइ सुठ्ठ चंग।। सुप्पहतरंगभामिणिहे धूय
पहवत्त पहावइ अवर हूय । अट्ठ वि एयाउ कुमारियाउ
कंचुइजणेहिं परिवारियाउ । घत्ता-दिव्वाहरणविराइयउ दिव्वंबरधारिउ ।
जलकीलाइँ समागयउ नं अमरकुमारिउ ॥७॥
दोहा-पीणुन्नय थोरत्थणिउ ण्हंतिउ ताउ निएवि ।
खुहिउ रुदु वामोहियउ मयणे बाणु मुएवि ।। कामेण निरारिउ जणिण ताउ
आसन्नएण चितिउ उवाउ । वत्थाहरणाइँ हरेवि ताहँ
विज्जन आणियइँ अणोवमाह। ण्हाएवि ताउ जोयंति जाम
वत्थाहरणाइँ न तत्थ ताम । ५ अनियंतियाहिँ आउलमणाहिँ
मुणि भणिउ गंपि पणवेवि ताहिं। न वियाणहुँ देवाण वि पियाइँ
वसणाहरण' केण वि निया। भयवंत वियाणहि तुहुँ निरुत्तु
उवएसहि ता रुद्देण वुत्तु । जाणमि फुडु तुम्हहँ दिहि जणेमि
जइ इच्छहो मइँ तो दक्खवेमि । निसुणेवि एउ विभियमणाउ
जंपति ताउ नवजोव्वणाउ । १०
८. १ मणेहिं।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org