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________________ ३७४ ] सिरिचंदविरइयउ [ ३८. २. १०घत्ता-वइरायही कारण हुयउ तहो तं पि सभज्जउ । चारणमुणिणा दिक्खियउ दूरुज्झियरज्जउ ॥२॥ ५ दोहा-अवरोप्परु सनियाणु तउ नेहवसाइँ करेवि । __वेन्नि वि सोहम्महो गयई सन्नासेण मरेवि ।। परिपालियमाहेसरपुरासु रायहो गंधारनरेसरासु । सो सुरु सग्गायउ गुणहिँ जुत्तु सच्चमइहे सच्चइ जाउ पुत्तु । एत्तहे अच्चामालिणि वि देवि आउक्खयम्मि सग्गाउ एवि। पविसिद्धाजणवत्र जणिय चोजे विक्खा विसालीपुरि मणोज । चेडयनरनार्दा सुप्पहाहे महएविहे हुय सुय सुप्पहाहे । नामेण भणिय जेट्ठा सउन्न सा पुव्वमेव सच्चइहिँ दिन्न । पर अज्ज वि नवि किज्जइ विवाहु एत्थंतरि होवि सत्थवाहु । कन्नत्थें सेणियरायपुत्तु तत्थायउ अभयकुमारु धुत्तु । भोलेवि लेवि नरवइसुयाउ नीसरिउ सुरंगइँ कियउवाउ । घत्ता-वंचिय जेट्टा चेल्लणण पट्टविय निवासहो । अप्पणु आइय तेण सहुँ मंदिरु मगहेसहो ॥३।। १० दोहा--जामावइ जेट्ठा घरहो पडिम जिणिदहो लेवि । ___ ताम न पेच्छइ ताइँ तहिँ वे वि गयाइं छलेवि ।। लज्जेवि जिणालउ गपि कन्न पव्वइय समुज्जलहेमवन्न । मामहो पत्तीहे महामईहे अज्जियहे पासि थिय जसमईहे । एत्तहि सच्चइणा मुणिवि वत्त वेरगगें रज्जविहूइ चत्त । पव्वइउ नवेवि समाहिगुत्तु तउ तवइ तिकालु तिगुत्तिगुत्तु । उत्तरगोकन्न मुएवि अद्दि विहरंतु कयाइ अणंगमद्दि । आवेप्पिणु रायगिहहँ समीवि थिउ गिरिवरि नामेणुच्चगीवि । एक्कहिँ दिणि गुणअणुराइयाउ तं वंदहुँ अज्जिउ पाइयाउ । वंदेप्पिणु गिरि अोयरहिँ जाम आइउ मेहागमि सलिलु ताम। १० २. १ जइरायहो। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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