SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 507
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३७२ ] कुंडियजन्नोव इयविराइउ जणणिजरहँ कियऋहिवायणु सा पारासरेण सविसेसें चलिउ बप्पु पुत्तु वि तहो पच्छ वासें भणिउ ताम सुहयारिप्र जहुँ सुमरेसहि साहियमणु एम भणेविणु ने हवसंगउ एतहि तह रूहो ढोइयमणु परिणाविउ पुत्तेण विवत्थ चित्त-विचित्तविरिय-चित्तंगय हवि गण दिसिहिँ पच्चालिय तिन्निवि एयउ ताण मणोज्जउ जोयणगंध पुत्तनिमित्तें ताणेक्क्कउ पुत्तु जणेष्पिणु धयरट्ठहो कउरव दुज्जसजुय १३. १ तित्थि । सिरिचंद विरइयउ Jain Education International बंभु व बंभंडाउ पराइउ । थिउ नंद समीवि गुणभायणु । अक्खयजोणि जणियपरिोसें । रवि पाउ व लग्गु कडच्छ । धत्ता - निवि तणुब्भउ जंतु जोयणगंध बोल्लिउ । मइँ मुवि तुह ताउ तुहुँ वि पुत्त संचल्लिउ ॥१२॥ १३ [ ३७. १२. ६ विविहरसविसाले णेयको ऊहलाले । ललियवयणमाले अत्थसंदोहसाले ॥ भुवणविदिनामे सव्वदोसोवसांमे । इह खलु कहकोसे सुंदरे दिन्नतोसे ॥ जामि जणेरें समउ भडारिए । ५ . तइयहुँ एसमि मुग्रवि तवोवणु । सहुँ नियताएँ रिसिप्रासमु गउ । पहु कामेण कयत्थि संतणु । जणिय पुत्त त तिन्नि' पसत्थ । एक्कहिँ दिणि वणु पारद्धिहे गये । अंबा अंबाइय अंबालिय । विहवत्तणु संपत्तउ भज्जउ । सुमरिउ वासु महारिसि चित्तें । वासु वि तक्खणि गउ प्रावेपिणु । १० पंड पंडव हुय जियसंजय । घत्ता -- सिरिचंदुज्जलकित्ति विविउरु लहु बहुजाणउ । लोकपसिद्धउ एम पारासरहो कहाणउ ॥१३॥ मुणिसरिचंद उत्ते सुविचित्ते गंतपयदसंजुत्ते । वासुप्पत्ती एसो सत्ताहियतीसमो संधी ॥ ॥ संधि ३७ ॥ For Private & Personal Use Only १० www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy