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________________ ३७० सिरिचंदविरइयउ [ ३७. ७. ६घत्ता--तामेत्तहे कज्जेण सक्कसहाण समग्ग वि। __ मिलिया देव मुरारि बंभमहेसर ससि रवि ।।७।। १० तेत्तीस कोडीउ जा ताम सुर सव्व प्राहुट्ट कोडीउ गण जक्ख गंधव्व । गह रक्खसा भूय विज्जाहरिंदा वि मिलिया दिया खत्तिया वइस सुद्दा वि। संवरु वि नरनाहु पुच्छेवि नियपत्ति गउ देवकज्जेण सहस त्ति सुरथत्ति । एत्तहिँ वि पुप्फवइ संजाय महएवि. संपेसियो पुरिसु तहिँ मग्गु जोएवि ।। विण्णविय गंतूण तेणेह लहु राय तुह पहु पलोएइ महएवि रिउण्हाय । ५ पहुणा वि सो भणिउ जाएवि विन्नवसु मा कुप्प पिy एत्थ पत्थावि महु खमसु । इंदो अहल्लाहे परयारदोसेण गोत्तमण दळूण सविप्रो सरोसेण । . सो तेण सावेण सहसभउ संजाउ लज्जिविगो कहिँ मि मेल्लेवि नियठाउ। कहिँ सो गवसणनिमित्तेण दूराउ मिलिग्रो सुराणं नराणं च संघाउ । घत्ता-तेण न आवहुँ जाइ एउ असेसु वि गंपिणु । अक्खिउ नृवरामाहे पुरिसें तेण नवेप्पिणु ॥८।। प्रायन्नेप्पिणु पत्थिववणियण बंधिवि सुउ भणेवि पट्टवियउ जइ तुम्हहुँ न जाइ आवहुँ पहु पइवयाहे पुत्तासालइयह एम होउ पहुणा पडिवन्नउ लेवि एंतु गयणंगणि गयउरु पडिय पुडिय छुडेवि गंगादहे गिलिया वम्मि गब्भु संजायउ तत्थ तेण सा घल्लिय जालें पत्तपूडिय गलि पुत्तत्थिणिय। तेण वि गंपि सामि विण्णवियउ । तो वीरिउ अप्पणउ समप्पहु । अप्पमि जेम नेवि तुह दइयर्ह । पुडियहे निययसुक्कु तो दिन्नउ। ५ ओलावगण झडप्पिउ नहयरु । निवडिउ नवर सुक्कु मच्छिह मुहे । एक्कहिँ दिणि मच्छंधिउ पायउ । बद्ध मीणि भीणक्खयकालें। १० घत्ता-घरु आणेप्पिणु जाम उयरु वियारइ मच्छिहे। ताम नियच्छइ बाल कड्डिय बाहिरु कुच्छिहे ॥९॥ विभियमाणसेण कड्ढेप्पिणु जाय जुवाण जुवाणहँ रुच्चइ वड्डाविय कंतहे अप्पेविणु। मच्छगंध नामेण पउच्चइ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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