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संधि ३६
प्रायन्नेवि तेण भवसंसरणाबत्थदुहुँ ।
पुरिसेण पउत्तु महु पुन्नेहिँ आयो सि तुहुँ ।। जो अत्थि को वि उवएसु सारु
सो देहि सामि हयदुक्खभारु । ता तासू चारुदत्तेण कहिउ
सायारधम्मु सम्मत्तसहिउ । स दु सन्नासेण सुहंकराइँ
दाऊण पंच परमक्खराइँ। पुच्छिउ नरु महु अवडहो इमाउ
किं अत्थि कोइ निग्गमउवाउ । सो भणइ अस्थि विवरेण तेण
गोहावइ रसपिवणहो कएण । तह लग्गिवि पुच्छि महाणुभाव
निग्गेज्जसु एत्थहो पहयपाव । निसूणेवि एउ संसयविणासू।
थिउ धम्मस्सवणु करंतु तासु । अन्नहिँ दिणि लग्गिवि पुंछि ताहि
नीसरिउ तुरिउ सइँ कूवियाहि । १० थोवंतरि अग्गा गमणु भग्गु
संकडि विडविहे मूलम्मि लग्गु । घत्ता–ता तहिँ अयजुहु तो पुन्नेहिं परावरिउ ।
बिले पाउ पइठ्ठ अयह चरंतियाहे धरिउ ॥१॥
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जाणेवि गहिय किर अजयरेण
अयवालु खणइ जामायरेण । ता भणिउ तेण हउँ मणुय मित्त
एत्थच्छमि कड्डहि करि परित्त । ता खंडिवि मूलइँ खणि वि तेण
नीसारिउ विभिउ माणसेण । तहो वत्त कहेप्पिण जाइ जाम
वणमहिसु पधाइउ हणहुँ ताम । सेरिहभएण उम्मग्गि लग्गु
नासेवि उच्चपाहणि वलग्गु । सिंगेहिँ उवलु ढालंतु वलिउ
पच्छाविऊण अजयरेण गिलिउ । ते अवरोप्परु जुज्झति जाम
उत्तरिवि तुरिउ सो नठ्ठ ताम । कह कह व किलेसें दुग्गईहे
नीसरिउ नाइँ भीमाडईहे । घत्ता-माउलमित्तण दिठ्ठ रुद्ददत्तेण तहिं ।
निउ अत्थनिमित्तु नामें टंकणविसउ जहिं ॥२॥
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