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३५. २१. १२ ].
कहकोसु होएप्पिणु वइरहो कारणाइँ
पत्तउ अन्नोन्नवियारणाइँ। सरविंधणपासनिबंधणाइँ
संकोडणतोडणमोडणारे । लउडोवलढेक्कलताडणाइँ
उक्कत्तणकत्तणपउलणाइँ । भामेवि महिहिँ अप्फालणाइँ
आलुंचणवंचणखंचणाइँ। वणवडणइँ दहणइँ खोंचणाइँ
तणपाणनिरोहाकंदणाइँ । प्रवराइँ वि छिदणभिंदणाइँ
घत्ता-दुक्खसयाइँ सहेप्पिणु मुवि तिरिक्खगइ ।
कह व किलेसें पाणी पत्तउ मणुयगइ ॥२०॥
तत्थ वि महंतदालिद्ददुक्खु
संपत्तु कयावि न कि पि सोक्खु । धणहरणइँ इट्टविनोउ सोउ
बंधणसेवणइँ अणिट्ठजोउ । हा हा भुय इह परलोयभुक्कु
मग्गंतु भिक्ख सुहिसयणमुक्कु । धणसंपयत्थु मलमलिणवेसु
परिसमिउ भमिउ देसेण देसु । मुउ दुक्खें गिरिगहणंतराइँ
पइसेवि जलहि दीवंतराइँ । देवत्तणे वि रक्खसु पिसाउ
हुउ भूउ पेउ दुन्नयसहाउ । वाहणु वेयालिउ छत्तधारु
तो गायणु नच्चणु कयवियारू । आउत्थिउ मंडु वितंडवाइ
अवरु वि एवं विहु नीयजाइ । इंदाइयदेवहँ निवि सोक्खु
जं पत्तु जीउ माणसिउ दुक्खु । वरबुद्धि वियाणियसव्वसत्थु
सुरवइ वि न वन्नहुँ तं समत्थु । १० घत्ता-एउ सुणेवि मणोहरु [सुहि] जिणधम्मु लई ।
पावहि सिरिचंदुज्जल सासय जेण गई ।।२१।। विविहरसविसाले णेयकोऊहलाले। ललियवयणमाले अत्थसंदोहसाले । भुवणविदिदनामे सव्वदोसोवसामे। इह खलु कहकोसे सुंदरे दिन्नतोसे ॥
मुणिसिरिचंदपउत्ते सुविचित्ते पंतपयदसंजुत्ते । चउगइदुक्खपयासो एसो पणतीसमो संधी ॥
॥संधि ३५॥
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