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________________ [ ३५६ ३५. २१. १२ ]. कहकोसु होएप्पिणु वइरहो कारणाइँ पत्तउ अन्नोन्नवियारणाइँ। सरविंधणपासनिबंधणाइँ संकोडणतोडणमोडणारे । लउडोवलढेक्कलताडणाइँ उक्कत्तणकत्तणपउलणाइँ । भामेवि महिहिँ अप्फालणाइँ आलुंचणवंचणखंचणाइँ। वणवडणइँ दहणइँ खोंचणाइँ तणपाणनिरोहाकंदणाइँ । प्रवराइँ वि छिदणभिंदणाइँ घत्ता-दुक्खसयाइँ सहेप्पिणु मुवि तिरिक्खगइ । कह व किलेसें पाणी पत्तउ मणुयगइ ॥२०॥ तत्थ वि महंतदालिद्ददुक्खु संपत्तु कयावि न कि पि सोक्खु । धणहरणइँ इट्टविनोउ सोउ बंधणसेवणइँ अणिट्ठजोउ । हा हा भुय इह परलोयभुक्कु मग्गंतु भिक्ख सुहिसयणमुक्कु । धणसंपयत्थु मलमलिणवेसु परिसमिउ भमिउ देसेण देसु । मुउ दुक्खें गिरिगहणंतराइँ पइसेवि जलहि दीवंतराइँ । देवत्तणे वि रक्खसु पिसाउ हुउ भूउ पेउ दुन्नयसहाउ । वाहणु वेयालिउ छत्तधारु तो गायणु नच्चणु कयवियारू । आउत्थिउ मंडु वितंडवाइ अवरु वि एवं विहु नीयजाइ । इंदाइयदेवहँ निवि सोक्खु जं पत्तु जीउ माणसिउ दुक्खु । वरबुद्धि वियाणियसव्वसत्थु सुरवइ वि न वन्नहुँ तं समत्थु । १० घत्ता-एउ सुणेवि मणोहरु [सुहि] जिणधम्मु लई । पावहि सिरिचंदुज्जल सासय जेण गई ।।२१।। विविहरसविसाले णेयकोऊहलाले। ललियवयणमाले अत्थसंदोहसाले । भुवणविदिदनामे सव्वदोसोवसामे। इह खलु कहकोसे सुंदरे दिन्नतोसे ॥ मुणिसिरिचंदपउत्ते सुविचित्ते पंतपयदसंजुत्ते । चउगइदुक्खपयासो एसो पणतीसमो संधी ॥ ॥संधि ३५॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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