SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 487
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३५२ ] सिरिचंदविरइयउ [ ३५. ४. 8पियवयणेण सइत्तणु थप्पहुँ गय सा सीहहो देहु समप्पहुँ। थिय पडिमाजोएँ परियचिवि गउ हरि भणिवि महासइ वंचिवि । १० घत्ता-तं कोऊहलु पेखेंवि हुउ निच्छउ पइहे । पुज्जेविण अवरेहिँ वि किय पसंस सइहे ॥४।। साहुं पडिलाहेदुं गदस्स सुरदस्स अग्गमहिसीए । नटुं सदी अंग कोढेण मुहुत्तमेत्तेण ॥ [ भ० प्रा० १०६१] साधु मुनि प्रतिग्रहीतुं गतस्य । कस्य ? सुरतनाम्नो नृपस्य । अग्रदेव्याः नष्टम् । किम् ? तदंगं शरीरम् । किमाख्याया: देव्याः ? सत्याख्यायाः। केन नष्टम् ? कुष्ठेन । कियता कालेन ? मुहूर्तमात्रेण । अत्राख्यानम् । नामें सुरउ सुरिंदुसमाणउ अस्थि अउज्झापट्टणि राणउ । नं सइ सयलंतेउरसारी कंत तासु सइ पाणपियारी । वज्जियरज्जकज्जु परमेसरु अच्छइ ताण समेउ निरंतरु । एक्कहिँ दिणि सुउ धम्मु महीसें भणिउ तेण पडिहारु विसेसें । मुणियागमणु होइ सुहयारउ अहवा रज्जकज्जु गरुयारउ । १० ता पर विन्नवेहि अच्छंतही अंतेउरि महुँ कील करंतहो । एम भणेप्पिणु पहु अंतेउरि गउ पइसरिउ ताम तहिँ अवसरि । साहुजुयलु चरियाइँ पइट्ठउ आवेप्पिणु पडिहारे सिट्ठउ । राउ वि पियसिंगारासत्तउ सुणइ न वार वार विन्नत्तउ । घत्ता-वार वार बोल्लंतहो कि पि वि कुविउ पइ । पुच्छइ रे पडिहार किमाया एत्थ जइ ॥५॥ कहइ दुवारपालु पहु आया रिसि सूयारें भव्वाराहिय धोविय पय वडिवत्ति समारिय एउ पसाउ करेप्पिणु गभ्मइ पिय पडु जावेप्पिणु गउ तेत्तहे पुज्जिवि साहु विहूसियरिद्धि पाविय पंचाइसय नरिंदें दमवरधम्मरुई विक्खाया। चरियहे पइसरंत पडिगाहिय । अच्छहिँ भाणसम्मि वइसारिय । तं निसुणिवि सहसुटिउ भूवइ । मुणि अच्छंति खडाइय जेत्तहे। दिन्नउ भोयणु तियरणसुद्धिप । साहुक्कारिउ सुरवरवंदें। ५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy