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________________ ३४४ ] सिरिचंदविरइयउ [ ३४. ५. ३असुइ सहावें चंचलचित्ती थी सुणहीव हीणकयमेत्ती। भामिणि विणु असणण विसूई दुम्मइ निव्भरदुक्कियकूई । सामा सिहिसिहि व्व संतावइ पुरिसहो दुग्गइदुक्खइँ दावइ । ५ विसमसील रक्खसि व भयंकरि साइणि व्व नरपाणखयंकरि । सिहिधूमोलि व मइलियगेही खलमेत्ति व खणदिट्ठसणेही । दुट्ठभुयंगि व वाहि व विसमी वंकवलण नइ व्व नीयंगमि । वग्घि व घुरुहुरंति न वि थक्कइ मयरि व गाहु न मेल्लहुँ सक्कइ । घत्ता-जो वीसासहो जाइ महिलहो सो नरु नट्ठउ । १० पडियउ वणि चोरिणिहे वच्चइ कवणु अमुट्ठउ ॥५॥ घरु अलीयप्रविणयप्रायासही कारणु वइरहो कलिहे विणासहो। अयसनिहेलणु संसयसयखणि दोसकसायसोयसस्सावणि । दुक्खुपत्ति सोक्खसंतासणि धम्महो विग्घु सुगइनिन्नासणि । कंत किवाणही धार व छिदइ पुरिसहो हियउ निमूलु व भिंदइ । मइर व मोहइ पासि व बंधइ जतु व निसुंभइ भल्लि व विभइ । ५ कियउवयार सया वि वियट्टइ कुवलयच्छि करवत्तु व कट्टइ। तियमइ तिक्खकुढारु व फाडइ मणुसु मयंधु मुसंढि व ताडइ । तामच्छउ संसग्गु व चित्तइँ रामानामा वि अपवित्त । भामइ संसारइँ तें भामा दुक्किा रमइ निच्च तें रामा । वहइ वहू तें भणिय विसट्टहिँ वणिया वयणहिँ वणइ अणिट्ठहिँ । १० घत्ता-नारि अवरु तें नारि रमणी रंजइ राई । पमया वुच्चइ तेण वट्टइ जेण पमाई ॥६॥ दइया दमइ जेण कयदोसा दारइ मणु तें वुच्चइ दारी अबला अबलाबुद्धिहे लहुडी कामिणि थोडउ कामु न रुच्चइ भज्जा जेण वियारहिँ भज्जइ बाला बलियाहँ वि मणु वालइ पुरिसहो जोसिज्जइ तें जोसा । कुच्छिय मरणइँ करइ कुमारी। मोक्खहो जंत बहोडइ बहुडी । चित्तु विलावइ विलया वुच्चइ । कमइँ कुलइँ तं कंत भणिज्जइ। .५ संयमु झाणज्झयण' चालइ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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