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________________ [ ३४५ ३४. १०. २ ] . कहकोसु. करइ वउक्खउ वल्लह तें तिय पच्छायइ दोसहिँ तेणेत्थिय । आलु पउंजइ पियहो पियाली माणु महइ तें भणिय महेली। घत्ता-मायबप्पु पिउ पुत्तु विसयंधा अवगन्नइ । कुणइ अकज्जसयाइँ कुलपरिहास न मन्नइ ॥७॥ मारइ मारावइ सइँ मरइ तं नत्थि जं न तियमइ करइ । आयनह रत्तइँ रत्तमई जउणद्दहि घल्लिउ देवरई। एत्थत्थि विणीदादेसि वरु सुरपुरु व अउज्झा नाम पुरु । तहिँ करइ रज्जु पहु देवरई तहो रत्ता देवि गइंदगई। सा चेय भणिज्जइ मित्तमई अच्छइ सहुँ ताइँ नराहिवई । दूरुज्झिय रज्जकज्जकरणु न विहावरि जाणइ नेव दिणु । संजायउ परचक्कागमणु थिउ अवहत्थिवि मंतियवयणु । सव्वहिँ मिलेवि नीसारियउ तहो तणउ रज्जि वइसारियउ । सहुँ मित्तमईग्र पइठ्ठ वणु तहिँ ताहि पियास तवियतणु । घत्ता-अलहंतें जलु तेण कड्ढेप्पिणु नियसोणिउ । उसहिबलेण करेवि पाइय पिययम पाणिउ ॥८॥ ५ हुय सत्थुप्पाइय मित्तमई संपत्तउ सिरिपुरु देवरई। तहिँ मुणिवि जणेण महापुरिसु दिन्नउ धणु भवणु जणियहरिसु । किन्नररइ नामें गुणनिलउ वावीघरि निवसइ पंगुलउ । तहो गेयासन्नइ ताण पई वंचिउ पावाए अण्णमई। सहुँ तेण करेप्पिणु मंतणउ तुज्झज्ज वरिसवद्धावणउ। दुट्ठाण रुएवि पवंचु किउ ण्हाणहुँ पिउ जउणायडहो निउ । मालाश नहारुपगुत्थियए वेढेवि निरंतरु इत्थियए। मंगलु गायंतिण पेल्लियउ सहसत्ति महादहि घल्लियउ । घत्ता--अप्पणु पंगुलएण सहुँ सुहेण थिय गंपिणु । एत्तहे ताम नरिंदु गउ सोदेण वहेप्पिणु ।।९।। तोडिउ मच्छेहिँ नहारुगुणु चिंतापवण्णु छायाबहले पत्तउ मंगलउरु झीणतणु । वीसमइ जाम तहिँ तरुहँ तले । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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