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________________ ३३८ ] सिरिचंदविरइयउ [ ३३. १०. ५सव्वहँ वि वयणु अवगन्नियउ तणुसुंदरिवयणे मन्नियउ। ५ परियाणिवि मणु उल्लिगियहिं तहो तणउ नरेंदें इंगियहिं । सा तहो जि समप्पिय धन्नु धणु दिन्नउ सम्माणिवि वरभवणु । गाहा--सवणवरगंधहत्थी गिहबंधणनेहनियलउम्मुक्को। महिलागणियारिरमो पेच्छह किह बंधणं पत्तो ।। पव्वयपुहइपोनिहिसमसारो सव्वरयणसारेसु । पेच्छह तिणतुसतुल्लो जानो सो जुवइसंगेण ॥ तहिँ ताण समाणु निबद्धरइ - जामच्छइ विसयासत्तमइ । आवेप्पिणु नयणाणंदकर तहो तणएं ताम निरुद्ध पुरु । जाणाविवि वइयरु अप्पणउ तेण वि किउ तासु नियत्तणउ । घत्ता-परिप्रोसियचित्तेण जाणिवि वइरायवल्लहो। नंदिज्जइ जयम्मि जं होतें सो न वि कासु वल्लहो ।।१०।। जं भणइ असेसु वि तं करइ जीव वि जियसत्तु न तो धरइ । तणुसुंदरि भणिय निवेण तुहुं एयस्स करेज्जसु परमसुहुं । जइ जाइ एहु ता निट्ठवमी पई निच्छउ जमपुरु पट्ठवमी। पहुवयणु पडिच्छवि' गेहु गया गणिया तहो करइ पयत्तु सया । अच्छंतहो सोक्खुप्पायण वोलीणइं बारह हायणई।। एक्कहिँ दिणि रयणविणिम्मियउ पाणहियउ देवाण वि पियउ। पुहईसहो पाहुडु आइयउ दीवायणमंतिहे ढोइयउ। रहसेण सो वि घरु लेवि गउ कड्ढेप्पिणु कंतर्ह वामपउ । किर परिहइ जाम ताम कुहिउ अंगुटुउ नियइ खेलसहिउ । घत्ता-पेक्खिवि हुउ निव्वेउ हा किह हउँ कुणिमंगे। संताविउ पावेण सुंदरियवयवभंगे ॥११॥ दुवई-खणभंगुरहो पूइबीभच्छहो रसवसकिमिनिवासहो । खयकायहो कएण मइँ पावें किं किउ हा हयासहो । १०.१ सवहिं । ११. १ पडछवि। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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