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३३. १०. ४ ]
दीवाणु प्रगणियगुरुबयणु तत्थथि जियारि जियारिबलु वाराणसपुर सिरिवम्मसुया परिणिय सिरिकंता तेण सई आय तसुंदरि दिनदिही पडिगाहिय हुय वल्लहिय पिया सहंति परिहउ भेइयउ
तेण वि चप्पवि नहछेउ कउ
दुवई - थिय तणुसुंदरी वि करिवि सुवन्नखोल
एतहि उन्निबल वाहणहो हक्कारिवि सय विदेसजणु पारंभिय खाइय खणहुँ जहि नरवइनरेहिँ संचियचरिउ भासिउ भो मुणि पइसारु कउ लइ जामिखणेसमि एंतु खणी उ भिक्खनिमित्तु भमंतु पुरु तह रूवालोयणि मोहियउ ते वि रुट्ठेण देहु भणिवि जलवाहिणिविज्जइँ धरणियलु
घत्ता - पडिय नाडि दुग्गंधु तं पेक्खेवि विरतउ । सा परिहवि नरिंदु सिरिकंत प्रासत्तउ ॥८॥
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अंगुट्ठ
नीसारिय गंपिणु दारिवाडए । विढवत्ती वराडए || राहो भए बहुवा हो । जियसत्तुनरिदे देवि धणु । दीवाणु मुणि संपन्न तहिं । चरियहि पद्मसंतु संतु धरिउ । रायाण खणियउ जाम नउ । इय वयहिँ मेल्लिउ तेहिँ मुणी । संप्राइउ तणुसुंदरिर्ह घरु | निग्गंतु तेहिँ पुणु रोहियउ । कुद्दाल पहारें प्राहिणिवि । दारेष्पिणु करिवि प्रथाहु जलु ।
मोहियचित्तउ । लिहिवि सिलायल रूवु थिउ तहे तण नियंतउ ||९||
कहको
घत्ता - गउ मुणि निययनिवासु मयणें
मन्नाविउ विणएँ दय करहि पयपवहें पट्टणु पूरियउ
गउ चरियहे पुरु बहुभव्वणु
पहु जसमइवल्लहु जसधवलु । सिरम महविहे गब्भहुया । सहुँ ताइँ विलासिणि हंसगई । पsिहासि रायो रुवनिही । सिरिकंत वि दुम्मण होवि थिया । चंडिलउ ताप संकेइयउ ।
पक्क गुट्ठ विसप्पु गउ ।
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दुवई -- एत्त हे पाणिएण पुरु पूरिउ वत्त सुणेवि राणो । उहिँ हिँ मुणि तणुसुंदरिरूवं झायमाणो ॥
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परमेसर जलु उवसंघरहि । tras नीसेसु विजूरियउ ।
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