SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 460
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३२. १. ३ ] , कहकोसु [ ३२५ ता भणिउ देवीण जइ एहु वाउलउ तो किं न अन्नं पयंपेइ वाउलउ । पर देव तुम्हारए अत्थि न वियारु तं सुणिवि मोणेण थिउ वइरिविड्डारु । एत्तहि वि मज्झण्हि सिरिभूइ संपत्तु सहुँ तेण तहिँ जूउ राणी पाढत्तु । हार त्ति पडि ता महारायवयणेण मणिमुद्दिया' सारियं गहणयं तेण ।। दाऊण तं हत्थि एयंति सिक्खविय सिरिभूइघरु धाइ देवीण पट्टविय । ५ गंतूण तहिँ ताइँ रयणाइँ धुत्तीय मग्गियइँ कहिऊण सविणाणु तं ती । एमेव पट्ठविय तुहुँ नत्थि रयणाइँ गय धाइ निसुणे वि बंभणिर्ह वयणाइँ । पुणु कहिवि सिरिभूइ भोयणो चिण्हाइँ पट्टविय पर तो वि पत्ताइ नउ ताइँ । हारियउ दियचिण्हु मणिमउ पुणो तेण गय लेवि सुमई महादेविवयणेण । मग्गियइँ रयणाइँ दियपत्ति तुह कंतु दे देहि सहसत्ति अच्छेइ रूसंतु। १० जन्नोवईयउ तो' ताण पेक्षेवि पट्टविय रूसेवि सा ताइँ अप्पेवि । घत्ता-लेप्पिणु रयणाइँ देविट भणिउ नराहिवइ । छड्डिज्जउ जूउ वट्टइ मज्झि दिणाहिवइ ।।७।। ता अक्खकील राएण मुक्क गय सयल वि नियनियनिलउ ढुक्क । अवरोहकालि भुत्तुत्तरम्मि महएविए रायही नियघरम्मि । जाणाविउ माणिक्कइँ नवेवि संथुय तुटेण निवेण देवि मेलिवि बहुरयणहँ मज्झि ताइँ हक्कारिवि वणिसुउ दावियाइँ। तेण वि निव्वाडिवि अप्पणाइँ लइयइँ को न मुणइ नियधणाइँ। ५ हक्कारिवि राएँ सच्चघोसु सो सेण भणिउ संजणियदोस्। पइँ एण मिसेण हयास सव्वु वीसासिवि जणु अवहरिउ दव्यु । बंभणु तें करमि न खंडु खंडु लइ पावयम्म तुह एहु दंडु।। घत्ता-मुट्ठिक्कहँ पंचसयहँ सहहि मल्लहो हणणु । खल गोमयथालु खाहि देहि अह सव्वधणु ।।८।। पाहूय मल्ल जीवियहरेहिँ हउ मुट्ठिपहारहिँ निठुरेहिँ । असहंतें भासिउ खामि छाणु लइ खाहि पयंपिउ णरपहाणु । गोमउ वि न सक्किउ खाहुँ तेण ल्हूसाविउ धरु पालियपएण । ७. १ मुणिमुद्दिया। २ जन्नोवइयत्तउ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy