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________________ ३१. ७. २ ] . कहकोसु ३१६ 1 मइँ सयल पलोइय पुहइवई पर सयरहो का वि अउव्व गई। दूरुझिय दुक्कियलंछणइं अन्नहो तारिसइँ न लक्खणइं । जसु पोरिसु साहसु सीलु कुलु अन्नहो कहाँ संपय बुद्धि बलु । रक्खियछलु वइरिविणासकरु को वरु मग्गणजणकप्पतरु । नियरूवोहामियउंछधणू अह किं वन्निज्जइ सव्वगुणू । ५ चिरु घोर वीरु तउ जाम किउ सा जइ पर पावइ सयरु पिउ ।। आयन्निवि गुण अणुराइयए सा भणिय सुजोहणजाइयए । कहि केम भडारिण मझु वरु सो सूहउ होइ अणंगसरु । निसुणेप्पिणु तं तवसिणि चवइ जइ होइ सयंवरु तो हवइ । परिहरिवि असेस नराहिवई तहो घिप्पइ माल मरालगइ। १० घत्ता-पायनिवि कन्नएउ पसन्नण भणिय जणणि जाएवि घरु । मेलावियबहुवरु मज्झ सयंवरु कारावहि अवरोहकरु ॥५॥ महएविण भणिउ नराहिवई तेण वि आलोइउ मंतिमई । सव्वेहिँ मि मनिउ एउ वरु हक्कारिउ आइउ वरनियरु । सुमुहुत्ते सव्व समग्गि किया कंचणमयमंचहिँ राय थिया । निग्गय कुमारि कोड्डावणिया नं हत्थभल्लि कामहो तणिया । पेच्छेवि जंति वंचेवि सई कासु वि हुय दुत्तर दुक्खनई। ५ कासु वि उरि खुत्तउ कामसरु मुच्छाविउ पाविउ को वि नरु । कासु वि गरुयारउ विरहजरु उप्पन्नु असड्ढलु डाहजरु । नीससइ सुसइ को विमणु मणु कासु वि संपाइउ जमकरणु । केण वि नियरज्जो लइउ खणु जइ एह न तो तववहु सरणु। . इय वियल कुणंति नरेंदसया जहिँ सयरु महीवइ तेत्थु गया। १० घत्ता--महुपिंगलु चत्तउ दइवायत्तउ कज्जु पयत्ते परिणवइ । सयरुवरि रवन्ना पेच्छह कन्नण चित्त माल मणिपुप्फवइ ।।६।। संजाउ विवाहु विसन्नमणा चारणमुणिपासि विहूयरउ ६. १ सयरुवरीउरवन्नए। गय नियनियनिलयही सव्व जणा। महुपिंगलेण संगहिउ तउ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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