________________
३२० ]
कह एह मल्लितित्थंकर हो बहुदिवसहि महि विहरंतु गुणी, चरियहे पइट्ठ चरियावसरे तहिँ सुंदर लक्खणलक्खधरु मग्गिय व सारु वणिहे पिया तेत्तु वहुमई जारिसइँ अंगि आहो तणए तारिसइँ रज्जु भुंजइ पुहई
घत्ता—ता ताम्र पउत्तउ विप्प पुहईवइ होंतउ रज्जु
सुलसाहि निमित्तु जणच्चियउ नियमंतिवृत्तु रंजियमणउ तं सुणिवि विरत्त परिहरिउ हिमाणें तेण विरत्तमणु आयन्निव नासियधम्मजसु हुउ सुरु देउ भावणभवणे कमलासणरूउ' करेवि तहिं बोल्लाविउ पव्वय परमपरु सुंदरु सयंभु गायंति वरु
सिरिचंदविरइयउ
तुह कारुनि प्रसाइयउ जड्डुव्व एहिँ एउ वय तुह तारण वि न वियाणियउ तिउराण वीहि न हवंति प्रया उट्ठेहि एहि लइ जाहुँ जण
८. १ कमलासणिरूव ।
Jain Education International
८
[ ३१. ७. ३
उप्पन्नि तित्थि भवभयहरहो । आइउ उज्झ महुपिंगु मुणी । थिउ सायरदत्तहो तण घरे । विप्पेण निप्पणु मुणिपवरु । किं कारणुता विपुच्छ किया । सामुद्दियसत्थु प्रसच्च सई । लक्खणइँ प्रणेयइँ सोहणए । कि होइ एहु निग्गंथु जई ।
निरुत्तउ सक्कु व सुहसंपयपयरे । करंतउ एहु प्रसि पोयणनयरे ||७||
सयरेण एहु मुणि वंचियउ । किउ तेण वि लक्खणु अप्पणउ । सुलसा एहु वसुसुउ वरिउ । हुउ रज्जु मुवि एहु सवणु । गउ मुउ कोहेण नियाणवसु । पुव्विल्लु वरु संभरिवि मणे । आगउ वणि पव्वउ वसइ जहिं । ॐ भवणपियामहु तिजगगुरु । उक्कट्टु जेट्टु जगसिद्धिकरु ।
१०
घत्ता — चउवेयपयासणु पावपणासणु कमलजोणि गुणि चउवयणु । लोयहिँ प्रमाणिउ तुहुँ मइँ जाणिउ तेण एत्थ किउ आगमणु ॥ ८ ॥
९
हउँ बंभु बंभलोयाइयउ । हउँ बुज्झमि एक्कु नाणनयण । विवरीउ लोग बक्खाणियउ । अय छाग हुणेवहो तेहिँ सया । पडु जावमि दावम जन्नगुणु ।
For Private & Personal Use Only
५
१०
५
५
www.jainelibrary.org