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________________ ३०४ ] नहिँ दिय सेट्ठि तत्थायउ किउ पइँ काइँ एउ सुउ भासिउ आयन्नेवि एउ उद्देएं किं दुक्ख इँ पिया पुच्छिउ वरु संभासमग्र देवि पुप्फक्खय मारणत्थु जहिँ पुरिसु पवेसिउ भणइ महाबलु ताउ गहिल्लउ तुहुँ न वियाणहि मग्गु नवल्लउ पहि पुज्ज जामि नायालउ तेण वि बलि मग्गंत हो ढोइउ तहँ पतु समीहिदाणें मारि सेट्ठि पुत्तु पियारउ मुउ उ जीवमाणु जामाइउ उम्मुच्छिउ कह कहव सदुक्खउ पियवयणेण ता ता मोयय अप्पिय धीर्ह एउ करेज्जमु एम भणेपिणु प्णु बाहिरे पुत्ति निवि भणिय भुक्खाइउ अच्छइ जं सिद्धउ तं भोय ता तें अवियातिप्र दिन्ना मुच्छिउ विसरसेण मुउ वणिवइ तहिँ पच्छावि पिया वि पइव्वय सिरिचंदविरइयउ धत्ता - कहिँ चल्लिउ जामाय तुहुँ पुच्छिउ सिरियत्तहो' दायाएँ । तेण विनायदेउ कहिउ पुज्जहुँ संपेसिउ तुह ताएँ ॥ ११ ॥ १२ ११. १ गुणवालहो । [ २६. ११. ५ नियवि विवाह विलक्खउ जायउ । ते व तो हत्थु पयासिउ । थिउ पडेवि चिंताजरवेएं । Jain Education International तेण वि कहिउ असेसु वि वइयरु । गंध धूव नाणा चरु दीवय । नायदेवदेउ तहँ पेसिउ । ५ जो पइँ पट्ठावइ एक्कल्लउ । नयरु महंतु मिलइ कहिँ भुल्लउ । तुहुँ अच्छहि आवाणि' निहालउ । गयउ महाबलु कालें चोइउ । मारिउ सो संकेइयपाणें । जाणिउ जणि जायउ हा हा रउ । पेच्छेवि वणिवइ मुच्छ पराइउ । थि तुहिक्कउ होवि विलक्खउ । घत्ता--- वोलीणहिँ कइवयदिणहिँ वणिणा गुणसिरि कंत पउत्ती । जइ जोयहि महु सोक्खु तुहुँ तो पाडहि प्रायहो समसुती ॥१२॥ १३ ५ १० For Private & Personal Use Only घत्ता--मुउ वणिनाहु नराहिवेण को वि नत्थि संता सुप्पिणु । किउ जामाइउ सेट्ठिपइ ससुरहो तणउ सव्वु धणु देष्पिणु || १३|| १० - १२. १ आवारि । १० किय विसगभिण परमामोयय । ए पर नियभत्तारहो देज्जसु । गय संपाइय वर्ण एत्यंतरे । छड्डेवि रज्जकज्जु हउँ प्राइउ । दे संखेवि मलाहि [तुहुँ] खणु । ५ लड्डु ता विसमविसभिन्ना । अवरु विदुट्ठ लहइ परि सगइ । विसु खाएप्प, पियपंथें गय । www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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