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________________ २६.. ११.. ४ ] कहकोसु [ ३०३ आयन्नेवि दियंबरजंपिउ सिरियत्तहो भएण मणु कंपिउ । मुणिवरवयणु कयावि न चुक्क इ नीसंदेहु पमाणहो ढुक्कइ । धीरें तो वि उवाउ करेवउ जाणिवि दुन्निमित्तु वंचेवउ । इय चितवि पाणिउ कोक्काविउ मारहुँ सो रन्नो नेवाविउ । बालु भणेप्पिणु तेण वि रक्खिउ मारिउ भणिवि एवि तहो अक्खिउ । ५ बहिणिवरेण पुत्तु करि पालिउ एक्कहिँ दिणि सिरिदत्ते आणिउ । पाणकरे मारहुँ णेवाविउ तेण वि णउ मारिउ संथाविउ । तहिँ रुवंतु पालियगोविदें दिट्ठउ गोउलियण गोविंदें । तेण सपुत्तु भणेवि अपुत्तहे पालहँ दिन्नु नेवि नियकंतहे। ताप वि पुत्तसिणेहें बालउ पालिउ जाउ जुवाणु गुणालउ । १० घत्ता-एक्कहिँ वासरे गोउलहो कज्जत्थिउ वाणिज्जकलालउ । परिपालियपडिवन्नयहाँ गउ गोविंदही घरु सिरियत्तउ ॥९॥ १० पेच्छिवि पुच्छिउ गोउलबालउ नंदणु कासु एहु गोवालउ । गोविंदेण भणिउ सुहयारउ । किं न वियाणहि पुत्तु महारउ । वार वार पुच्छंतहो अक्खिउ मितें मित्तहो गुज्झु न रक्खिउ । वणि वइयरु सुणेवि चिंताविउ एहु सो निच्छउ काणणि पाविउ । अज्ज वि करमि उवाउ वियप्पिउ लेहु लिहेप्पिणु तासु समप्पिउ। ५ पेसिउ नयरहो महुरु भणेप्पिणु गउ सो पियराएसु लहेप्पिणु । उण्हाला खरतावाकंतउ पुरपदेसि नंदणवणि सुत्तउ । गणिय वसंतसेण तत्थाइय जीवियास नं तासु पराइय । छोडिवि कंठि निबद्धउ बालप लेहु विचारिउ बुद्धिविसाल । घत्ता-अवधारेवि लेहत्थु तण चितिउ आयो रक्ख करेवी। १० नहसुत्तिए णयणंजण जहिँ विसु तहिँ किय विस्सा देवी ।।१०।। तेण कमेण पुणो गलगंठिउ गउ घरु पुच्छेप्पिणु पिउमित्तहो तेण वि किउ लेहत्थु रवन्नी पुज्जिउ जणि सव्वहिँ जामाइउ । गय सा सो वि सुएप्पिणु उट्ठिउ । पुरउ निहित्तु लेहु तप्पुत्तरे । निय सस तासु विवाहहुँ दिन्नी । परमविहूइए पुन्नविराइउ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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