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________________ ३०२ ] रित्त निष्पिणु कावडि कंतप्र किं कारणु रित्तउज्जायउ किं तुहुँ कि हउँ भुक्खा सरुयइँ लेवि निवित्ति गंपि सिप्पा णइ पडिउ एक्कु पाढीण गुरुक्क उ उदिणु हउँ निव्विन्नु नियत्तउ उतुहुँ खल खवणयसंसग्गि जो गउ रित्तहत् घरु प्रवइ नीरु जाहि जाहि जमथत्तिहे गउ उत्तरु अदितु नियपत्तिहे तत्थ सुयंतु भुयंगें डसियउ पहा मुउ प्रहिणा दट्ठउ तो दुक्खेण मरेप्पणु सरयहो घत्ता — ताम कहिज्जइ तेण तहे प्रज्जु भजे मइँ साहुसमीवर | धम्मु सुणेप्पिणु लइउ खणु पढमजालि पडियहो मारेवइ || ६ || सिरिचंदविरइयउ गुणवालपुत्ति राणब्भत्थिय (?) गुणवालहु मणु तत्थ ण मण्णिउ पुति लेवि गउ णियधणु मित्तहो नियथी गब्भिणि तत्थ मुएप्पिणु I पेच्छिवि सो चरिया हे पट्टे [........] पज्जय वरु गुणनामें हा हि जियs किलेसें दारउ ६. १ आयउ । ७ पत्ता - एहु वि एयह तण रायपसा पसारियउ ७. १ चर वारउ । Jain Education International घत्ता – उज्जेणिहे उज्जमपरहो पुत्तु सत्थवाहहो बहुवित्तहो । उ सो उयरि सिरीमइहे गब्भि धणकित्ति गुणवालहो ( ? ) ||७|| [ २६. ६. ८ पुच्छिउ नाहु छुहासमसंत । किं मंडल मीणक्खउ जायउ' । कहि खाति काइँ डिंभ रुयइँ । ८ घल्लिउ जालु रुद्ध जलयरगइ । सो जे सरवारउ' [ मइँ ] मुक्कउ । ता रुट्ठा ताप अहिखित्तउ । मारियाइँ सव्वाइँ भुक्खग्गिए । सो कि घरिणि वयणु विहावइ । ५ पडउ वज्जु चडु वियहि बलति । थि सुन्नहरि पडिप्पिणु रति । निउ जीविउ जमधाडि मुसियउ । जोयंति जमघंट दिट्ठउ । गय पाविट्टिणि पंचमनरयहो । घरं पुन्नवसें गोसामिउ होसइ । सोक्ख परंपराउ पावेसई ||८|| १० I मंतिपुत्त परिणयणि समत्थिय । तम्हा परदीवंतरि चल्लिउ । विवि तत्थ पुरि घरि सिरियत्तहो । गउ गुणवालु निल्लु हवेष्पिणु । · ] भणिउ जसोहरु साहु कणिट्ठे । पेच्छह एहु कम्मपरिणामें । ५ यन्नहिता भइ भडारउ । For Private & Personal Use Only १० www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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