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२९. १४. ११ ].
कहकोसु
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जाणिवि जोग्गु सरूवु सलक्खणु
पडिवयणेण मुणेवि वियक्खणु । निय सुय अङ्घ रज्जु पाणंदें
दिन्नु तासु वसुदत्तनरिंदें । रायपसाएँ रज्जसमिद्ध उ
जायउ सोमयत्तु सुपसिद्धउ । अच्छइ जाम भोय भुंजंतउ
रिसि जयकेउ नाम संपत्तउ । चरियह चारु चरंतु पइट्ठउ
सेट्टिसुयावरेण घरि दिउ ।। पडिगाहिउ भत्तिण भुंजाविउ
पंचपयारु दाणफलु पाविउ । पुच्छिउ मुणिवइ पुत्वभवंतरु।
तेण वि कहिउ पासि तुहुँ धीवरु । पालिउ पइँ मुणिवयणु न खंडिउ
एक्कु मच्छु सरवारउ छंडिउ । तहो फलेण सर आवइ पत्तउ
मरिवि एह संपय संपत्तउ । घत्ता-सुणिवि विरत्तउ पुव्वभउ सोमयत्तु तवचरणु चरेप्पिण। १०
सिरिचंदुज्जलु जसनिलउ गउ सव्वत्थविमाणु मरेप्पिणु ॥१४।। विविहरसविसाले णेयकोऊहलाले । ललियवयणमाले अत्थसंदोहसाले । भुवणविदिदनामे सव्वदोसोवसामे। इह खलु कहकोसे सुंदरे दिन्नतोसे ॥
मुणिसिरिचंदपउत्ते सुविचित्ते एत्थ जणमणाणंदे । एसो एउणतीसो नामेण दयाफलो संधी ॥
॥संधि २९॥
१४. चरिहे।
२. चरंति ।
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