SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 440
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २९. १४. ११ ]. कहकोसु [ ३०५ जाणिवि जोग्गु सरूवु सलक्खणु पडिवयणेण मुणेवि वियक्खणु । निय सुय अङ्घ रज्जु पाणंदें दिन्नु तासु वसुदत्तनरिंदें । रायपसाएँ रज्जसमिद्ध उ जायउ सोमयत्तु सुपसिद्धउ । अच्छइ जाम भोय भुंजंतउ रिसि जयकेउ नाम संपत्तउ । चरियह चारु चरंतु पइट्ठउ सेट्टिसुयावरेण घरि दिउ ।। पडिगाहिउ भत्तिण भुंजाविउ पंचपयारु दाणफलु पाविउ । पुच्छिउ मुणिवइ पुत्वभवंतरु। तेण वि कहिउ पासि तुहुँ धीवरु । पालिउ पइँ मुणिवयणु न खंडिउ एक्कु मच्छु सरवारउ छंडिउ । तहो फलेण सर आवइ पत्तउ मरिवि एह संपय संपत्तउ । घत्ता-सुणिवि विरत्तउ पुव्वभउ सोमयत्तु तवचरणु चरेप्पिण। १० सिरिचंदुज्जलु जसनिलउ गउ सव्वत्थविमाणु मरेप्पिणु ॥१४।। विविहरसविसाले णेयकोऊहलाले । ललियवयणमाले अत्थसंदोहसाले । भुवणविदिदनामे सव्वदोसोवसामे। इह खलु कहकोसे सुंदरे दिन्नतोसे ॥ मुणिसिरिचंदपउत्ते सुविचित्ते एत्थ जणमणाणंदे । एसो एउणतीसो नामेण दयाफलो संधी ॥ ॥संधि २९॥ १४. चरिहे। २. चरंति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy