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संधि २६
जीववधो अप्पवधो जीवदया होदि अप्पणो हु दया ।
विसकंटो व्व हिंसा परिहरिदव्वा तदो होदि । [भ.प्रा. ७९६] जीववधो जीवहिंसा अप्पवधो अात्मघातो भणितो भवतीत्यर्थः । सुगममपरम् ॥ जीववध अप्पवधो एत्थक्खाणं ।।
धुवयं-दूरोसारियजीववहु पयडियजीवदयागमनिम्मलु ।
पणवेप्पिणु जिणु पायडमि जीववधादियाहँ सुम्मउ फलु । नासिक्कनयरपच्छिमदिसए
सुपसिद्धि अत्थि कोंकणविसए । गामउडु पलासगामि पयडु
नामें सुदामु समयत्तजडु । तहो भज्जइँ फलिहपईहभुप्रो
वसुदामु सुदामा जणिउ सुप्रओ नियगामसमीवि असोसजलु
काराविउ तें तलाउ विउलु। १० तो पालिहे किउ उज्जाणवणु
तो मज्झि दुग्गदेविहे भवणु । सहुँ विसयजणेण पावनिरउ
वरिसहो वेवारउ तह पुरउ । महिमुच्छउ जीवहँ करइ वहु
गामम्मि भमाडा देविरहु । कालेण पवड्डियपावभरु
संजाउ तासु खयवाहिजरु । कायरु सुदामु हुउ मरणखणे
उट्ठिउ हाहारउ बंधुजणे। हक्कारिवि पुत्तु परिट्ठविउ
उवइठ्ठ किं चि कंचणु ठविउ । घत्ता-सुणु वसुदाम परोक्खे महुँ जो मग्गा तहाँ भोयण देज्जसु ।
जिह छम्मासिय देवयहे होइ जत्त तिह पुत्त करेज्जसु ॥१॥
मुउ एम भणेप्पिणु गामवइ हुउ छलउ पावें भारियउ कंपंतु कणंतउ गीढमउ अट्ठमियहि वारहि तक्कडउ
तत्थेव पत्तु तिरियंचगइ। तह देविहे अग्गन मारियउ । वाराउ सत्त एवं निहउ । पुणरवि संजायउ बोक्कडउ ।
संधि २६ के आदि में लिखा है 'ज्ञानोपयोगः'।
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