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________________ २६८ ] परिहरिवि रज्जु गुणधणु मुणिंदु मंतीस वि नामें सुबुद्धि चोरु वि सुवन्नखुरु सुद्धभाउ अवर वि प्रणेय जिणदिक्ख लेवि उदिदोदयाइनिवनारिसत्थु मित्तसिरिपहूइड सेट्टिणीउ अवरेहिँ पयत्तें लइउ रम्मु काले चरेवि चरितभारु सिरिचंदविरइयउ Jain Education International तउ लइउ नवेवि तिनोयवंदु | उ संजउ श्रपयारसुद्धि । पव्वइड करेप्पिणु सव्वचाउ । थिय माणव मउ मच्छरु मुएवि । दिक्खंकिउ जायउ एक्कवत्थु । जिउ सम्मादिट्टिणीउ । सहुँ सम्मत्तेण गिहत्थधम्मु । उदिदोदउ भूवइ सवणसारु । हु घत्ता - महिमंडलि विहरेष्पिणु धम्मु कहेप्पिणु सिरिचंदुज्जलकित्तिधउ । सन्नासेण मरेप्पिणु जिणु सुमरेष्पिण सहुँ सव्वहिँ सुरलोउ गउ ।।१४।। [ २८.१४.३ विविहरसविसाले पेयको ऊहलाले । ललियवयरणमाले प्रत्थसंदोहसाले ॥ भुवणविदिनामे सव्वदोसोवसामे । इह खलु कहकोसे सुंदरे दिन्नतोसे || मुणिसिरिचंद उत्ते सुविचित्ते एत्थ कोमुइकहाए । एसो तुरयकहक्खा अट्ठाहियवीसमो संधी ॥ ।। संधि २८ ।। For Private & Personal Use Only ५ १० www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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