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कहकोसु
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धत्ता — एम कहेवि कहंतरु सवणसुहंकरु विज्जुलयात पउत्तउ । तप्पहूइ दुक्कियहरु महुँ सिवसुहयरु हुउ सम्मत्तु निरुत्तउ || ११|| १२
२८. १४. २ ]
निसुणेवि एउ वणिवइ सभज्जु अह चारु पलोइउ कहिउ भद्दे आयन्निवि कुंदलया वुत्तु इच्छामि पडिच्छमि नेव एउ निग्गहु पहा वड्डियमलाई इयरहुँ सव्वहँ सम्माणदाणु एत विसमुग्गड गयणि भाणु गउ वणिभवणि वि गुणनिहाण राण विनिम्मलजसपयासु दूरीकयदुक्किय कम्मबंधु सुहि कवण हि मणिमिच्छाहिमाणु
घत्ता-
--- तं निसुणेवि मणोज्जन सेट्ठिहे भज्जए कुंदलयात पउत्तउ । हउँ सद्दहमि न यहँ विगयविवेयहँ सामिय वयणु अजुत्तउ ।।१२।।
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किं कारण पुच्छर पुहइपालु म्हेहिँ विदिट्ठउपयडु एत्थु भाइ सा पहु हु वि मणोज्जु यहिँ जिणसास परिणएहिँ बुज्भिय सुयदिट्ठो फलु विवेउ हउँ मंदबुद्धि परसमयभत्त मइँ पुणु न कयाइ जिणिदधम्मु यहँ जि अज्जु उवइट्ठ रत्ति कि बहुणा अज्जु जि जइण दिक्ख
पण पइँ पिययमि किउ मणोज्जु । सहि सुट्ठ कलयं ठिसद्दे । किउ तुम्हहिँ एत्थु न किंपि जुत्तु । चिंतन सुणेवि नरवइ सखेउ । एयाहे करेवउ मइँ खलाहे । इय चितिवि गउ घरु नरपहाणु । हवइपरिमियजणसमाणु । तेण वि किउ प्रब्भागयविहाणु । पुच्छिउ पुहईसें अरुहयासु ।
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निवि निसि कहा बंधु । भामिणि का करइ न सद्दहाणु ।
विभियमणु मंति विमइविसालु । मूलाहियकहवइयरु पसत्थु । पच्चक्खु वि पेक्खिवि धम्मकज्जु । किं कियउ न त जाणियनएहिँ । कज्जेण तेण नृव भणिउ एउ । दुद्दिदुसुक्क हियरत्त । माहप्पु पलोइउ हयविहम्मु ।
निवि हुय महु गरुय भत्ति । हमि सिक्खमि निरवज्ज सिक्ख ।
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घत्ता - उ सुप्पिणु राएँ सव्वसहाएँ तुट्टएण अणुमन्निय । तुहुँ सकियत् सन्नी गुणसंपन्नी एम भणेप्पिणु वन्निय ॥ १३ ॥
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तु पर परियाणहि धम्मभेउ
इय भणिवि निवेण सपरियणेण
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संजा जाहिँ एरि विवेउ । धम्माणुराय रंजियमणेण ।
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