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२९४ ] सिरिचंदविरइयउ
[ २८..५. ३ता तेण गंपि उवएसु लेवि
परियाणिय वाइ निएवि वे वि । परिप्रोसिउ सायरदत्तपुत्तु
थिउ पीइए तत्थ हवेवि धुत्तु । एत्तहे खमयावहि संभरेवि
आगय वणि वाणिज्जइँ करेवि । ५ विन्नविउ नवेप्पिणु तेण सामि
दिज्जउ जं वुत्तउ घरहो जामि । पडिवन्नु असोएँ चित्ति ठाइ
जो सो लइ सुंदरु एक्कु वाइ। तेण वि निव्वेडिवि एक्कु ताहँ
ते वे वि तुरंगुत्तम हयाहँ । भासिय ए लेमि सुणेवि एउ
चिंताविउ पहु किं कहिउ भेउ । घत्ता--ए पालसिय अलक्खण सुठ्ठ सुलक्खण अवर लेहि जे भावहिँ। १०
देसंतरि मणरुय सोहण नववय जे नीयवि बहु पावहि ॥५॥
विरुय वि ए होंतु न अन्न लेमि
तावच्छउ अज्जु पहार देमि । इय भणिवि निवासहो गउ असोउ
पुच्छिउ हक्कारिवि निययलोउ । को एत्थु समीहइ मज्झ छेउ
किं पहियहाँ कहिउ तुरंगभेउ । सव्वेहिँ मि मयमायंगगामि
पडु जाविउ सवह करेवि सामि । केण वि जाणेप्पिणु कहिउ मम्मु
तुह पुत्तिहे केरउ एउ कम्मु । ५ किं रूसहि परियणजणही नाह
घरभेएँ कासु न नट्ठ राह । निच्छउ सा तो पासत्तबुद्धि
इयरहँ कह कहइ तुरंगसुद्धि । - जइ देमि कह व देसियो पुत्ति
तो भणहिँ सयण विरइय आजुत्ति । अह देमि न तो प्रायहे न अन्नु
भावेसइ होसइ वरु विसन्नु । जा रत्त जासु सा तासु नारि
इयरहो पुणु फुडु पच्चक्ख मारि । १० इय लोयवयणु अपमाणु केण
किज्जइ इय चितेविणु मणेण । घत्ता-ताएँ रूवरवन्नी तासु जि दिन्नी सुय सुहुँ पुव्वुत्तासहि ।
रूप्पिणि व्व गोविंदें परमाणंदें परिणिय तेण वि ता सहि ॥६॥
कइवयदिणेहिँ गमणथिएहिँ बोलाविवि नावडयो कहेवि थोवंतरु जलनिहिमज्झि जाम भो कमलसिरीपिय कहमि तुझु उत्तारमि तो तइँ नेमि परु
चल्लिउ घरु सो सहुँ सत्थिएहिँ । पल्लटु ताउ सुय सिक्खवेवि । वच्चंति वुत्तु नाविण ताम । जइ एक्कु तुरंगमु देहि मज्झ । नं तो न पराणमि कहिउ सारु। ५
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