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२८. ५. २ ]
कहको
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घत्ता – वीयसोय सुहलक्खण सुट्ठ वियक्खण गेहिणि तासु सोयहो । कमलसिरित्ति तणुब्भव जणियमणुब्भव रूवें रइ व तिलोयहो ||२||
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सो अइहे प्राणेऊण ताहे
नाणा कंदइँ मूलइँ फलाइँ कालें कमल सिरि सिणेहु जइ होइ कह व महु दइव कंतु चितंति उ अनि मयच्छि एक्aहिँ दिणि गमणाउलमणेण कमलाणणि हलि कमलसिरि एत्थु सहि तुज्झ पसाएँ गुणनिहाणि सेवा हि कलयं ठिसद्दि तं सुणिविता गग्गरगिराप्र भो वल्लह हउँ मिन एत्थ थामि
तुहुँ सहिदुहि सोमालमुत्ति म्हइँ देसिय संपविहीण पच्चेल्लियउवयारहो किलेसु अच्छहि सुहँ लइ महु तणिय सिक्ख भासइ असोयसुय पइँ समाणु पइँ विणु कुडुंब सुहि सयणु सव्वु इ नेहि न तो मारेवि जाहि पडवन्नु तेण ता तार्ह गमणु ता वितामु उवइट्ठ भेज
धत्ता - मणि मन्नियउवयारें विणयागारें वणिउत्तेण पउत्तउ । परउवयारिणि पहियहँ सहुँ धणरहियहँ पियसहि जाहुँ न जुत्तउ ॥३॥
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दिणु नेहेण णोवमाह । कुमुमाइँ देइ वरपरिमलाइँ । भावइ सो मोरिहिँ नाइँ मेहु । ता होज्जउ एहु समुद्ददत्तु । नवनेहभरच्छहँ कमललच्छि । पियसहि उत्त एयंति तेण । न वियाणिउ मइँ किंचि वि णत्थु । महु सरिसवु जिह निययठाणि । लइ सज्ज खमेज्जहि जामि भद्दि । बोल्लिउ सहर सनिब्भरा । १० निच्छण सुयणु पइँ समउ जामि ।
जलगामिउ जसु तणु रत्तवन्न् श्रायासचारि जो हंसभासु
घत्ता - अच्छंति प्रणोवम वेन्नि तुरंगम जलगयणंगणगामिय । सोणासयवन्नुज्जल सालस दुब्बल मुणेवि लइज्जसु सामिय ||४||
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सुहि वच्छिलि गब्भेस रहो पुत्ति । परपेसणजीविय दुहविलीण | काहीसमि तुह नेष्पिणु विदेसु । धरि रिद्धि मुद्धि मा भमहि भिक्ख । वल्लह महुँ दुक्खुवि सुहनिहाणु । ५ पsिहास कहिँ महुँ जीवियव्वु । लइ मूलही फेडहि विरहवाहि ग्रह नारिरयणु परिहरइ कवणु । हवा अणुरत्तो चिन्ह एउ |
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सो चालइ किंचि मुयंतु कन्न । सो किंपि न चालइ गुणनिवासु ।
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