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________________ संधि २८ धुवयं-सत्तमघरिणि वणीसें धम्ममणीसें पुच्छिय विज्जुलया पुणु । कहहि केम हयकलिमलु तुझुज्झियमलु हुउ सम्मत्तु महागुणु ॥ सा कहइ णाह मयणाहिरामि तरपूजणवण जणदिनकामि । नामेण सुज्जकोसंबि अत्थि पट्टणु जहिँ एक्कु वि दोसु नत्थि । तहिँ मणिमयकुंडलघिट्ठगंडु सुहुँ करइ रज्जु नरवइ सुगंडु। ५ महएवि तासु विजयाहिहाण मुणिवरहो खमाइ व गुणनिहाण । तत्थेव वसइ सुरदेवनामु वणिनंदणु कयजिणमुणिपणामु । वाणिज्जो जाणवि भगलिदेसु आणेवि तुरउ पावियविसेसु । ढोइउ सुगंडनरवइहे तेण तेण वि कयत्थु किउ बहुधणेण । एक्कहिँ दिणि कयमासोववासु मंदिरि रिसिसेणु मुणिंदु तासु । १० चरियह पइठ्ठ तेणेवि दिठ्ठ उद्वेप्पिणु पडिगाहिउ वरिठ्ठ । दिनउ तहो भोयणु नवपयारु संचिउ सुहु पंचाइसयसारु । धत्तातेत्थु जि पुरि वणिउत्तहो सायरदत्तहो विहवविलासहिँ चत्तउ । सिरिदत्त' जणियउ नामें भणियउ पुत्तु पयोनिहिदत्तउ ॥१॥ चितिउ मणि तेण ससाहकार . आणमि हरि हउँ मि मणोहिराम इय भणिवि भगलिदेसहो सहेउ तहिँ तेहिँ मिलेवि पलासगामि तिहिँ वरिसहिँ उप्पन्न उवाण गय एम भणेवि समुद्ददत्तु नामेण कुडुंबिउ तहिं असोउ रक्खावइ सो हय सुणिवि तासु तेण वि पडिगाहिउ गुणनिवासु [.................] वइ सामिसेव दाणहो फलु निवि सुवन्नधार । पावमि जेणेरिस अत्थकाम। गउ नियवयंसवणियहिँ समेउ । अन्नोन्न भणिउ धणकणपगामि । सव्वहिँ वि मिलेवउ एत्थ ठाए। ५ थिउ तेत्थु जि पहसमसमियगत्तु । निवसइ सलग्घसंपयसमेउ । गउ सायरदत्तो पुत्तु पासु । ............।] रक्खइ हयसाहणु निच्चमेव । १० १. १ सरिदत्तए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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