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२८. ६. ७ ] कहकोसु
[ २६५ ता बोल्लिउ कमलसिरीपिएण
केवट्ट काइँ बहु जंपिएण । जइ सच्चइ तो परतीरु नेहि
जं वुत्तु तरावणु तं लएहि । अग्गलउ अवरु कि चि वि न देमि __ इयरेण भणिउ तो हउँ न नेमि । जइ नेहि न भणइ समुद्ददत्तु
ता आणहि तीरहो जाणवत्तु । ता तं तडम्मि उत्तारिऊण
गउ तरिउ परोहणु पेरिऊण । १० एत्तहे असोयतणयहे तणेण
उवएसें सो तोसियमणेण । घत्ता-आरुहिऊण तुरंगर्म गयणंगणगर्म सायरसोह नियंतउ ।
इयरु धरेवि जलोवरि [........"] आगउ घरहो सकंत उ ।।७।।
अन्नहिँ दिणि कमलसिरिहे करम्मि वारिचरु धरेप्पिणु नियघरम्मि । गयणंगणगामिउ तुरउ लेवि
गउ दिट्ठउँ नियनरवइ नवेवि । राएण वि दुल्लहु हउ निएवि
पडिगाहिउ रज्जो अद्धु देवि । नियनंदणि नाइँ अणंगसेण
दिन्नी नामेण अणंगसेण । पावेप्पिणु पहुसम्माणु वित्तु
हुउ सिरिदत्तहे सुउ सुहियचित्तु । ५ सो उसहसेणवणिवरहो वाइ
राएण समप्पिउ सुद्धजाइ । पालइ पहुवयणे करइ तत्ति
वेयड्डगिरिंदहो उरुयभत्ति । अट्ठमि चउदसिह सयं वणिंदु
तहिँ चडिवि जाइ वंदहुँ जिणिदु । जाणिय संदिट्टि विसुद्धदिट्ठि
विस्सामइ अंतरि तुरउ सेट्ठि । पुणु चालवि चालइ लालिऊण
हत्थेण तिवारप्फालिऊण । १० जंतु वि आवंतु वि एम तासु
सो करइ विहाणु तुरंगमासु । घत्ता-पहुपच्चंतणिवासिउ सुहडसयासिउ जियसत्तू जि पसिद्धउ ।
अत्थि चरडु छलइत्तउ साहसवंतउ परधणहरणपइट्ठउ ॥८॥
अत्थाणि तेण नियपरियणासु तरपूजणवश बहुधणकणम्मि भूवइहे सुगंडहो तुरयरयणु तं आणिवि जो महुँ देइ तासु पहुवयणु सुणेप्पिणु समरसोंडु हउँ प्राणमि देव भणेवि एउ जिणभवणि तत्थ अच्छंतएण
जंपिउ मुहु जोइवि साहिलासु । भो रविकोसंबीपट्टणम्मि । अच्छइ घरि वणियहो कमियगयणु । अहिलसिउ देमि साहसधणासु । सहसभडु एक्कु नामेण कोंडु। ५ गउ बंभयारि होइवि सवेउ । रंजिउ जणु उग्गतवेण तेण । .
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