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________________ २६० ] सिौरचंदविरइयउ [ २७. १०. ३तेण वि तेण विराएँ गंपिणु भत्ति रिसि रिसिगुत्तु नवेप्पिणु । सुणिवि धम्मु दुग्गइकयवसणहँ किउ परिहारु झत्ति दुव्वसणहँ । सावयधम्मसमउ सम्मत्तें लइउ समुद्ददत्तवणिउत्तें । अवरु अयाणियफलहो अवग्गहु अंगीकयउ भाविसुहसंगहु । तं सुणेवि मन्नाविवि आणिउ बहिणिण दिनु दव्वु सम्माणिउ । एत्तहिँ लद्धलाहगंजोल्लिय करिवि वणिज्जु सदेसहो चल्लिय । सत्थवाह ते तेहिं समाणउ पुच्छिवि बहिणि पत्तसम्माणउ । उमउ जि चल्लिउ पयणियहरिसहिँ आय समीवहीं कइवयदिवसहिँ। १० धत्ता–उक्कंठिय मणमंदिरही सत्थु मुएवि जाहिँ जामंतरि । भुल्लिवि विहिवसेण पहहो निवडिय भीसणे गुहिलवणंतरि ॥१०॥ पहपब्भट्ठहिँ तम्मि भमंतहिँ पहसमभुक्खतिसासमसंतहिँ । दिठ्ठ तेहिँ किंपाउ रवन्नउ मरणु व तरुरूवेणवइन्नउ । विसयसुहाइँ व पढमु सुसायइँ परिणामम्मि महादुहदायइँ । सव्वहिँ चारु भणेवि सुयंध तासु फलाइँ खाहुँ पारद्ध। पुच्छिउ कवणु एहु उमएँ तरु सोहइ सउरिसो व्व वरफलधरु। ५ वुत्तु सहाएँ संसयसामें तोडिज्जहिँ किं सहयर नामें। . कडुयउ नीरसु तं वज्जिज्जइ जं मिट्ठउ सुयंधु तं खज्जइ । भणइ वणिंदपुत्तु अमुणिय फलु असमि न भंजमि नियवउ निम्मलु । तेण रसेण सव्व घुम्माविय हुय निच्चे? महीयलि पाविय । घत्ता-करहुँ परिक्ख वियक्खण जणमणहरु नियरूव करेप्पिणु। १० दूमियचित्तु मित्तमरणे भणिउ उमउ वणदेविण एप्पिणु ॥११॥ १२ किं न पहिय देवाहँ वि भोज्जइँ एयइँ खाहि फलाइँ मणोज्जइँ । एहु रुक्खु अवियाणियनामउ पुन्नहिँ पाविज्जइ अहिरामउ । आयहो फलइँ खाइ जो माणउ वाहिविहीणु होइ सो अहिणउ । मरिवि कयावि न दुक्खु निरिक्खइ नाणे सयरायरु वि परिक्खइ । एत्थु पासि सामरि वाहिल्ली होती हउँ जरजिन्न गहिल्ली। ५ आयो फलरसेण सुच्छायउ सुंदरु महु सरीरु संजायउ । एउ म जाणहि जं एए मय उहिँ लग्गा होगवि अक्खय । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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