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२१८ ] सिरिचंदावरइयउ
[ २७. ५. ४मेल्लिवि बुद्धधम्मु किं किज्जइ
अन्नु वि जत्थेरिसु जाणिज्जइ । एम भणेवि ताहँ मणु तोसिउ
अन्नहिँ दियहिँ निमंतउ पेसिउ। ५ हक्कारिय पडिवत्ति समारिय
भवणभंतरम्मि बइसारिय । बाहिरि ताणेक्केक्की लेप्पिणु
पाणहिया तिम्मणु रंधेप्पिणु । दिन्नउ सरसु भोज्जु पाणंदिय
सव्वहिँ पोमसिरी अहिणंदिय । घत्ता-पुच्छिय जंतहिँ नियनिलउ अम्हहँ एक्केक्की एत्थ थिया ।
देहि पलोवि पोमसिरि पाणहि न मुणिज्जइ केण निया ॥५॥ १०
सुणिवि पडुत्तरु दिन्नउ धुत्तिए
वंदयाहँ पोमावइपुत्तिए। तुम्हइँ दिव्वनाणि विन्नायउ
जिह मुउ महु जणेरु संजायउ । संपइ तिह तेणेव नियच्छह
खाइवि तिम्मणु पुणु मइँ पुच्छह । एह सुणेप्पिणु दिन्नाकोसहिँ
गंपिणु वणियहाँ कहिउ सरोसहिँ । भो तुह सुयवहूए निक्किट्ठण
खाविय पाणहियउ निक्किट्ठए। ५ गुरु परिहउ सुणेवि धिक्कारिय
सा सपिय वि ससुर नीसारिय । वे वि ताइँ परदेसहो चलियइँ
पुरबाहिरि दो सत्थहँ मिलियइँ । सत्थ वि अवरोप्परु लोहं गय ।
भुंजिवि सविसु भोज्जु रयणिहिँ मय । घत्ता-वारिज्जंतु वि पिययम रयणीभोयणखणु भंजेप्पिणु ।
हुयउ बुद्धसंघो वि तहिं निच्चेयणु विसन्न भुंजेप्पिणु ॥६॥ १०
पोमसिरिहे पियसोउ करंतिहे हुए पहाण सुहिसयणसहायउ नंदणु मुयउ निएप्पिण रुन्नउ डाइणी पइँ पुत्तु महारउ वहुवयणेण काइँ जीवावहि पायमूले तहो एम भणेप्पिणु मझ लहेवि निमित्तु पराइउ इय चितेवि कयंजलिहत्थर जइ ण विरूवी हउँ कासु वि जणि जइ दिढ निसिभोयणखणु पालिउ तो विसवेयणा निच्चे?उ
दुक्खु दुक्खु गय रयणि रुयंतिहे। वणिवइ बुद्धदासु तत्थायउ । वहुयहे अब्भक्खाणु विइन्नउ । खङ्घ ससत्थलोउ सुहयारउ । नं तो जं न पत्त तं पावहि । नंदणु थविउ तेण प्राणेप्पिणु । एउ निरुत्तउ कम्मु पुराइउ । ताश पउत्तउ पुन्नपसत्थ” । जइ निच्चलु महु मणु जिणसासणि । जइ मइँ अन्नु पुरिसु न निहालिउ । १० सासणदेवि नाहु महु उट्ठउ ।
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