________________
संधि २७
धुवयं-पउमलया पिय पंचमिय पुच्छिय वणिनाहेण महासइ ।
नियसम्मत्तदिढत्तणो कारणु कहसंबंधु पयासइ ।। अंगाजणवण चंपापुरवरि
धाडीवाहणरज्जसुहंकरि । उसहदासु णामेण वणीवइ
होतउ तासु पिया पोमावइ । पोमसिरी सुय तहे उप्पन्नी
नावइ नायकन्न अवइन्नी। बुद्धदासु नामेण पसिद्धउ
अवरु वि वसइ तत्थ वणि रिद्धउ । बुद्धदासि पिय रूवरवन्न उ
बुद्धसंघु तह पुत्तुप्पन्नउ । सो समित्तु एक्कहिँ दिणि तेत्तहे
गउ वणिंदजिणमंदिरु जेत्तहे । देवच्चण करंति तरलच्छिय
पोमसिरी तहिँ तेण नियच्छिय । मोहिउ मयणें तह आसत्तउ
दुक्खु दुक्खु गउ गेहु पहुत्तउ। १० थिउ सेज्जहे पडेवि चिताविउ
गंपिणु मायरीश बोल्लाविउ । घत्ता--का असुहत्थी कह सुसुय जेण न तुह किं चि वि पडिहासइ ।
आयन्निवि मायहे वयणु लज्ज मुएप्पिणु सो अासासइ ।।१।।
जइ जणेरि निरुवमरूवसिरी
उसहदासतणया पोमसिरी । परिणमि तो हउँ निच्छउ जीवमि
इयरहँ पेयाहिवपुरि पावमि । एउ सुणेवि ताश पादन
कहिउ गपि नियकंतहो कन्न। तेण वि एवि मयणसिहितवियउ
गुणवयणेहिँ पुत्तु सिक्खवियउ । दुल्लहलंभि चित्तु जं किज्जइ
तं केवलु अप्पउ विनडिज्जइ। ५ अम्हइँ मंसासिय सो सावउ
सच्चसउच्चायारसहावउ । अम्हईं चंडालाइँ व भावइ
पुत्तय तासु पुत्ति को पावइ । मा विरहग्गिा अप्पउ जाल हि
अहवच्छह उवाउ पडिवालहि । घत्ता-एम भणेवि लेवि तणउ गपि जसोहरु मुणि पणवेप्पिणु ।
सावउ करिवि पवंचु हुउ बुद्धदासु जिणधम्मु सुर्णप्पिणु ।।२।। १०
२. १. अहवछ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org