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२६. १३. १५ ]
कहकोसु
[ २८५ थंभिउ पुरदेविश थिउ केहउ
तडि कट्ठमउ सिलामउ जेहउ । हुए पहाण अंतेउरलोएँ
मन्नाविय कुमारि कयसोएँ। तह वयणे पुरदेविण मुक्कउ
लज्जवि थिउ दप्पेण विमुक्कउ । नरनाहेण सयलपरिवार
थुणिउ खमाविय कयणवयारे। १० सुरवरेहिँ सुविहूइ पुज्जिय
आणंदिउ जणु दुंदुहि वज्जिय । तं निवि केहिँ वि पव्वइयउ
केहिँ वि पुणु सावयवउ ल इयउ । मुंडिया वि उसहसिरी दिक्खय
हुय तवसिणि सयलागमसिक्खिय । घत्ता--नायसिहिप भणिउ पिय तप्पहूइ महु सुहयरु ।
हुउ समत्तु दिढ सिरिचंदजसुज्जलु मलहरु ।।१३।। विविहरसविसाले णेयकोऊहलाले। ललियवयणमाले अत्थसंदोहसाले ॥ भुवणविदिदनामे सव्वदोसोवसामे। इह खलु कहकोसे सुंदरे दिन्नतोसे ॥
मुणिसरिचंदपउत्ते सुविचित्ते पंतपयदसंजुत्ते । सोमसिरि-मुंडियाणं कहाए छव्वीसमो संधी ।।
॥ संधि २६ ॥
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