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________________ २६. ११. २ ] कहकोसु २८३ ] एवमाइ मुणिवयणु सुणेप्पिणु भणिउ अमच्चे पय पणवेप्पिणु । अज्ज पहूइ तुझ पयपंकय सरणु मज्झ दूरुज्झियभवभय । भो भयवंत विवज्जियकम्में करि पसाउ महु जिणवरधम्में । तं निसुणेवि मुणिदें दिन्नउ सावयधम्मु तेण पडिवनउ । एत्तह केण वि जंतें कालें रायहो कहिउ कट्टकरवालें। सामिय सोमसिरी अोलग्गइ मूढउ सावयधम्मे वग्गइ। निप्पहरणु पहुकज्जु न सारइ संकडि केम विवक्खु वियारइ । तेण देव सो होइ न भत्तउ थिउ पहु अवधारिवि अवचित्तउ । अन्नहिँ वासरि नयणाणंदें चालिवि लोहकहाउ नरिंदें। नियनित्तिस लएवि पलोइउ नं सहमंडबु विज्जुज्जोइउ । सयलसहाय पसंसिउ सारउ अवरु ण एवंविहगुणधारउ । घत्ता-परिवाडी पुणु सव्वाण वि' लेवि किवाणइँ । पुहईसेण सइँ दिट्टइँ जमजीहसमाणइँ ॥९॥ पच्छा मग्गि उ मंति विसारउ जोयहुँ केरिसु खग्गु तुहारउ । तेण वि जाणिउ जाणिवि अप्पउ धीरे सुमरेविण परमप्पउ । कणयमुट्ठि कट्ठमउ सकोसउ अप्पिउ मंडलग्गु हयहिंसउ । कड्डइ जा सरोसु पुहईसरु ता हुउ सूरहासु भाभासुरु । तो तेएण दिट्टि हय लोयहो संमुहुँ नियइ कुसूरुज्जोयहाँ । ५ पिसुणहँ वयणु पलोइवि राएँ भासिउ कि न निएहु कसाएँ। तुम्हइँ कहिउ मज्झ हियभावें सोमसिरी तुम्हइँ असभावें। ओलग्गा असिणा कट्ठमएँ ता पहु भणिउ मुणियजिणसमएँ । घत्ता-एयहिँ सच्चु तुह उवइठ्ठ खमहु पुहईसर । लोहसत्थधरणे खणु अस्थि मज्झ परमेसर ॥१०॥ १० पुन्नपहावें संदरिसियजसु सुणिवि एउ सव्वेहिँ पसंसिउ ६. १ सव्वणेवि। कट्ठमनो वि हूउ असि एरिसु । देवहिं साहुकारु नहि घोसिउ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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