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२८२ ] सिरिचंदविरइयउ
[ २६. ७. ३जो एक्कु वि सरीरु पासासइ
तासु वि पुन्नहीं मोल्लु न दीसइ । उक्त च-यो दद्यात्काञ्चनं मेरुं कृत्स्नां चापि वसुंधराम् ।
एकस्य जीवितं दद्यात् फलेन न समं भवेत् ॥ ५ हिरण्यदानं . गोदानं भूमिदानं तथैव च ।
एकस्य जीवितं दद्यात् फलेन न समं भवेत् ।। जो पुणु सव्वजीव मं भीसइ
तासु महापुरिसहो कि सीसइ । एक्कदियहकएण एक्केण वि
जीवदयादाणे पाणेण वि । वाणारसिह पासि दिढचित्तें
सुंसुमारदहि बंधिवि घित्ते। १० सुरपूयाहिसेउ संपत्तउ
नरवइ पुरु परिवारु वि सत्तउ । चिरु उज्जेणिहे विगयविवेएं
धीवरेण नामें भवदेएं। किउ मुणिदभासिउ गरुयारउ
मेल्लि उ एक्कु मीणु चउवारउ । तेण तेण चउआवइचत्तउ
मरिवि रायसेट्टित्तणु पत्तउ । सव्वहँ अभउ जेण पडिवन्नउ
तेण भवणि भणु काइँ न दिन्नउ । १५ घत्ता-जीवदयाइँ विण दाणु वि दिज्जंतु अजुत्तउ । .. निप्फलु सव्वु तहो तवु कायकिलेसु निरुत्तउ ॥७॥
धम्माहम्मु देउ गुरु सत्थें
दसणु नाणु चरिउ परमत्थें । जीव अजीव वि पासवसंवरु
निज्जर बंधु मोक्खु भवभयहरु । लोयालोउ वि सयलु मुणिज्जइ
अवरु वि तं न जं न जाणिज्जइ । सत्थें समउ समत्थिउ अच्छइ
लइउ कुवाइहिँ खयहाँ न गच्छइ । एउ वियाणिवि जेण निरुत्तउ
दिन्नउ सत्थदाणु जिणवुत्तउ । ५ तेण चउग्गइगमणकयंतही
तित्थु पवत्ताविउ अरहंतहो । विज्जादाणु देइ जो माणउ
सो भवि भवि हवेइ बहुजाणउ । तिहुयणगुरु सव्वण्हु भडारउ
सो हवेइ सासयसुहसारउ । किं बहुएण भुयंगमराएँ
खंडसिलोयही फलु असहाएँ । पत्तउ पंडुरिएण न मारिउ
गरुडें गुरु भणेवि जयकारिउ । १० एक्कक्खरहो वि जइ जउ दिज्जइ
तो वि न गुरुहे भत्ति' मुविज्जइ । घत्ता-एक्कक्खरु वि गुरु अवियाणमणु जो निदइ ।
सयवारउ हवइ सो साणु पाणु कहिँ निंदइ ।।८।।
८. १ मंति।
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