________________
२८० ] सिरिचंदविरइयउ
[ २६. २. ११जं पावेवि पत्तु अप्पउ परु
तारइ तं दिज्जइ दुक्कियहरु । कहिँ पत्तत्तु अजुत्तउ लेंतही
दाइहे दायारत्तणु देतहो । धत्ता-अभयदाण जर प्रोसहु समेउ सुहसत्थें ।
आहारेण सहँ दिज्जति पत्तं परमत्थें ।।२।।
पुच्छइ पुणु पणवेवि महंतउ
किं केण वि अवरेण वि पत्तउ । फलु दूरीकयदुग्गइदाणहँ ।
मइँ जिह पाहासेह पदाणहँ । कहइ साहु निसुणइ मंतीसरु
वेन्नायडनयरम्मि नरेसरु । सोमप्पहु सोमप्पह राणी
अस्थि नाइँ इंदहो इंदाणी । तें दिज्जइ बहुत्तु विड्डत्तउ
पउरसुवन्नु जन्नु अाढत्तउ।। आइ मज्झि अवसाणि निरंतर
दिज्जइ जत्थ सुवन्नु सुहंकरु । ताहि जि महसालहिँ अासन्नउ
विस्सभूइ दिउ वसइ पसन्नउ । निरु निट्ठावरु निप्पिहवित्तउ
बहुगुणभवणु दयादमवंतउ । तेणेक्कहिँ वासरि खले गंपिणु
जव कवोयवित्तिए प्राणेप्पिणु । कय सत्तय सलिलेण निबद्धउ
पिंडचउट्ठउ सुटु सुयंधउ । १० हुयवहि एक्कु हुणेवि सइं तउ
अतिहिहि के रउ मग्गु नियंतउ । जामच्छइ सो ताम पराइउ
मुणि पिहियासमु गुणहिं विराइउ । घत्ता-संतु भमंतु पुरे घरपंति पालियनिट्ठउ ।
भिक्खहे तासु घरु कयमासोवासु पइट्ठउ ॥३॥
।
मुणि पेक्खेप्पिणु पय पणवेप्पिणु निउ घरि विहि करेवि संपुन्नउ भुत्ता तम्मि न कि पि वियप्पिउ पुणु नियभामहे वयणु पलोइउ पंचच्छरियइँ पुनेणायइँ साहुक्कारिउ सुरहिँ नहंगणि वरिसिउ कुसुमनियरु प्रायासहो एम भणंतु व दुंदुहि वज्जिउ ४. १ अव्वभियम्मि। ...
भत्तिण भयवं ठाहु भणेप्पिणु । करयलि अतिहे पिंडु तहो दिन्नउ । पिंडउ तेणप्पणउ समप्पिउ ।। ताण वि तइउ तुरंति पढोइउ । अव्वहियम्मि' जईसरि जाय'। पडियइं नाणारयण' पंगणि।। पेक्खउ जणु फलु पत्तविसेसहो । आयउ सुरहि पवणु जणु रंजिउ ।
५
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org