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________________ अच्छइ विण्डुसिरी तहिँ राणउ प्रत्थितासु बुद्धी महंतउ सयल कलाविन्नाणवियाणउ एक्कहिँ वासरि नयणाणंदिरु कमासोववासु बहुनिट्ठउ पेक्खिविपत्तु उव्वु वियड्हें डिगा मुणि विहियविहाणें सममणेण मुणिनाहें भुत्तउ रिसिदाणहो फलेण सुरसंथ्य संधि २६ १ धुवयं-प्रवर वि कहमि कह एत्थत्थि भरहि सुपसिद्धउ । बीना समिद्धउ || वच्छदेसे पुरु Jain Education International घत्ता — रयणपुप्फवरिसु सभमरु वरगंधाहिट्ठिउ । ए इस निएवि मंती सें सोत्तिय सिहिहोत्तिय प्रावसथिय वेयपुराणसडंगवियक्खण सम्माणिय प्रणेय भुंजाविय बद्धारि असे संताणइँ तोविन किंपि विचोज्जु नियच्छिउ मइँ मुणिद दिन्नइँ पमाणइँ पर न किंपि कोऊहलु धम्महो भास पह इंदियमणइच्छउ कारण उद्दहो एयइँ अजियंगर नामेण पहाणउ । सोमसिरी नामेण महंतउ । कयपासंडधम्मसम्माणउ । साहु समाहित्तु तहो मंदिरु । चरियहिँ चरियासमग्र वइट्ठउ । उपणु सड्ढाइ गुणड्ढें । निउ भोयणु कय सम्माणें । भुंजिवि प्रक्खयदाणु पउत्तउ । पंचच्छरिय निलणि तहो हुय । दुहिसदु नहि सुरसाहक्कारु समुट्ठि ॥१॥ २ चितिउ नियमणि मुणिउ विसेसें । जन्नविहाणसोमपाणत्थिय । बंभण मइँ बंभ व्व सलवखण । तावस भगव भिक्ख संभाविय । दिन्नइँ विविहइँ इच्छादाणइँ | इचितेवि समंजसु पुच्छिउ । दह तेयाइँ महंतइँ दाइँ । दिउ उ उव्व जम्महो । एयइँ नं मह दाणइँ निच्छउ । तेण भणेवि होंति नउ एयइँ । For Private & Personal Use Only ५ १० ५ १० www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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