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कहि वत्थे प्रत्थि सासुरप्र सोक्खु किं सुवइ वसई पर पइँ समाणु तं निसुणिविवाहोहल्लिवत्त
जिणभवणि ताइँ दोन्नि वि जणाइँ अच्छंति जहिच्छा भोयणत्थु दिवसावसाणि कम्मारिय व्व एक्कल्लिय सोवमि रणगत्त तामच्छउ रइसुहु सुहयरेण लइ लइयउ लावइँ ताप कंतु निसुणेवि एउ मायरि पलत्त भासइ काऊण पर्वचजुत्ति आगय घरु वरणहँ जइयहुं जि
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सिरिचंद विरइयउ
धत्ता -- देष्पिणु उवरि सवत्तिहे पुच्छहि काइँ पुणु । मुंडिवि सिरु नवखत्ताउंछ कवणु गुणु ॥ २ ॥
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जंभेट्टिया -- ताप यास पर पडिगाहिउ । अच्छइ मायडि खलप्र विमोहिउ ||
संपय पुणु कयदेउलनिवास किं बहुणा करमि उवाउ कोइ इय भासिवि सुय संठविय ताम्र मा उच्छ्रय होहि भणेवि एउ ति विणासविहि चितवंति तामेकहिँ दिणि खट्टगधारि
किं कुणइ न किंपि सवत्ति दुक्खु । किं करइ सुयणु सम्माणु दाणु । गग्गिरगिर वच्चइ रत्तनेत्त ।
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बत्ता - तुहुँ मणहर भत्तारहो वडारियपणय । तें तुज्भुवरि न जुज्जइ महु देणहँ तणय || ३॥
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| २५.२.६
हनिसु रइरस रंजियमणाइँ । मज्झन्नसमग्र पर एंति एत्थु । घरखोरु करेवि असेसु प्रव्व । न वियामि कंतही तणिय वत्त । वयणुविन प्रत्थि महुँ सह वरेण । अच्छइ वामोहिउ मुहु नियंतु । नावइ सिहि चुलिएण सित्त । वेयारिय हा पावा पुत्ति । सासु
उत्तमइँ तइयहुं जि ।
जंभेट्टिया -- निसुप्पिणु इण सुरउ मुएप्पिणु । पइ परिणाविउ सवह करेष्पिणु ||
थिय पिउ पडिगा हेप्पिणु हयास । दुहेत जे विणासु होइ । पडवालहि कवि दिणांइँ माए । गय गेहु जरि वहंति खेउ । जामच्छइ कोवें पज्जलंति । कालु व कावालिउ चंडमारि ।
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